Saturday, November 16, 2019
शव-पावती संवाद
शवजी का ववाह
ी रामचरत (RamCharit.in)
Wikipedia for God Ram | रामचरतमानस अथ सहत | रामचरतमानस हद अनुवाद |
RamCharitManas in Hindi | Valmiki Ramayana
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सुंदरकाड अथ सहत |
Sundarkand With Hindi
Meaning
December 10, 2014 शव 1 Comment
ीगणेशायनमः
ीजानकवलभो वजयते
ीरामचरतमानस
पचम सोपान
ी सुदर काड
ोक :
* शातं शातममेयमनघं नवाणशातद
ाशभुफणीसेमनशं वेदातवें वभुम्
रामायं जगदरं सुरगु मायामनुयं हर
वऽहं कणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणम्1
भावाथ:-शा, सनातन, अमे (माण से परे), नपाप, मोप परमशा
ने वाले, ा, शभु और शेषजी से नरंतर सेवत, वेदा ारा जानने योय,
सवापक, वता म सबसे बड़े, माया से मनु प म दखने वाले, समत
पाप को हरने वाले, कणा क खान, रघु म े तथा राजा शरोमण
RamCharit Manas
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ী রাম চিরত মানস সূ |
Ram Charit Manas
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ી રામ ચરત માનસ સંૂણ | Ram
Charit Manas Complete in
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 ಾಮಚತ ಾನಸ
ಸಂಪಣ| RamCharit
Manas Complete in
Kannada
ਸ਼ ਰਾਮਚਿਰਤ ਮਾਨਸ ਸੰਪੂਰਨ | Ram
Charit Manas Complete in
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ीरामचरत मानस मानस मीमांसा
तुत संह वनयपका
राम कहलाने वाले जगदर क म वंदना करता ँ॥1
* नाया पृहा रघुपते दयेऽमदये
सयं वदाम भवानखलातरामा।
भ यछ रघुपुंगव नभरां मे
कामाददोषरहतं मानसं च॥2
भावाथ:-हे रघुनाथजी! म स कहता ँ और फर आप सबक अंतरामा ही ह
(सब जानते ही ह) क मेरे दय म सरी कोई इछा नह है हे रघुले! मुझे
अपनी
नभरा (पूण) भ दजए और मेरे मन को काम आद दोष से रहत कजए॥
2
* अतुलतबलधामं हेमशैलाभदहं
दनुजवनकशानु ाननामगयम्
सकलगुणनधानं वानराणामधीशं
रघुपतयभ वातजातं नमाम॥3
भावाथ:-अतु बल धाम, सोने पवत (सुमे) समान कातयु शरीर
वाले, पी वन (को वंस करने) लए अन प, ानय म अगय,
संपूण गुण नधान, वानर वामी, ी रघुनाथजी य भ पवनपु ी
हनुमान्जी को म णाम करता ँ॥3
चौपाई :
* जामवंत बचन सुहाए। सुन हनुमंत दय अत भाए॥
तब लग मोह परखे तुह भाई। सह ख मू फल खाई॥1
भावाथ:-जाबवान् सुंदर वचन सुनकर हनुमान्जी दय को बत ही भाए।
(वे बोले-) हे भाई! तु लोग ःख सहकर, क-मू-फल खाकर तब तक मेरी राह
खना॥1
* जब लग आव सीतह खी। होइह काजु मोह हरष बसेषी॥
यह कह नाइ सब कँ माथा चले हरष हयँ धर रघुनाथा॥2
भावाथ:-जब तक म सीताजी को खकर (लौट) आऊ काम अवय होगा,
यक मुझे बत ही हष हो रहा है यह कहकर और सबको मतक नवाकर तथा
दय म ी रघुनाथजी को धारण करक हनुमान्जी हष होकर चले2
* सधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतु द चढ़ ता ऊपर॥
बार-बार रघुबीर सँभारी। तरक पवनतनय बल भारी॥3
भावाथ:-समु तीर पर एक सुंदर पवत था। हनुमान्जी खे से ही (अनायास
ही) दकर उसक ऊपर जा चढ़ और बार-बार ी रघुवीर का मरण करक अयंत
बलवान् हनुमान्जी उस पर से बड़े वे से उछले3
* जेह गर चरन हनुमंता। चले सो गा पाताल तुरंता॥
जम अमोघ रघुपत कर बाना। एही भाँत चले हनुमाना॥4
भावाथ:-जस पवत पर हनुमान्जी पै रखकर चले (जस पर से वे उछले), वह
तुरंत ही पाताल म धँस गया। जैसे ी रघुनाथजी का अमोघ बाण चलता है, उसी
तरह हनुमान्जी चले4
नवीन वषय
शव-पावती संवाद
शवजी का ववाह
शवजी क वच बारात और ववाह
क तैयारी
वता का शवजी से याह लए
ाथना करना, सतषय का पावती
पास जाना
रत को वरदान
कामद का वकाय लए जाना
और भम होना
भरतजी का तीथ जल थापन तथा
चक मण
ी राम-भरत संवाद
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* जलनध रघुपत त बचारी। त मैनाक होह म हारी॥5
भावाथ:-समु ने उह ी रघुनाथजी का त समझकर मैनाक पवत से कहा क
हे मैनाक! तू इनक थकावट र करने वाला हो (अथात् अपने ऊपर इह वाम
)5
दोहा :
* हनूमान तेह परसा कर पुन क नाम।
राम काजु कह बनु मोह कहाँ बाम॥1
भावाथ:-हनुमान्जी ने उसे हाथ से दया, फर णाम करक कहा- भाई! ी
रामचंजी का काम कए बना मुझे वाम कहाँ?1
चौपाई :
* जात पवनसु व खा। जान कँ बल बु बसेषा॥
सुरसा नाम अह माता। पठइ आइ कही तेह बाता॥1
भावाथ:-वता ने पवनपु हनुमान्जी को जाते ए खा। उनक वशे बल-
बु को जानने लए (परीाथ) उहने सुरसा नामक सप क माता को भेजा,
उसने आकर हनुमान्जी से यह बात कही-1
* आजु सुर मोह द अहारा। सुनत बचन कह पवनकमारा॥
राम काजु कर फर म आव। सीता कइ सुध भुह सुनाव॥2
भावाथ:-आज वता ने मुझे भोजन दया है यह वचन सुनकर पवनकमार
हनुमान्जी ने कहा- ी रामजी का काय करक म लौट आऊ और सीताजी क
खबर भु को सुना ,2
* तब तव बदन पैठहउँ आई। स कहउँ मोह जान माई॥
कवनेँ जतन नह जाना। सस मोह कहे हनुमाना॥3
भावाथ:-तब म आकर तुहारे मुँह म घु जाऊ गा (तु मुझे खा लेना) हे माता! म
स कहता ँ, अभी मुझे जाने जब कसी भी उपाय से उसने जाने नह दया,
तब हनुमान्जी ने कहा- तो फर मुझे खा ले3
* जोजन भर तेह बदनु पसारा। कप तनु क गु बतारा
सोरह जोजन मु तेह ठयऊ। तुरत पवनसु बस भयऊ॥4
भावाथ:-उसने योजनभर (चार कोस म) मुँह लाया। तब हनुमान्जी ने अपने
शरीर को उससे ना बढ़ा लया। उसने सोलह योजन का मु कया। हनुमान्जी
तुरंत ही बीस योजन हो गए॥4
* जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा। तासु न कप प खावा॥
सत जोजन तेह आनन कहा। अत लघु प पवनसु लीहा॥5
भावाथ:-जैसे-जैसे सुरसा मु का वतार बढ़ाती थी, हनुमान्जी उसका ना
प दखलाते थे उसने सौ योजन (चार सौ कोस का) मु कया। तब हनुमान्जी
ने बत ही छोटा प धारण कर लया॥5
* बदन पइठ पुन बाहे आवा। मागा बदा ताह स नावा॥
मोह सुर जेह लाग पठावा। बुध बल मरमु तोर म पावा॥6
भावाथ:-और उसक मु म घुसकर (तुरंत) फर बाहर नकल आए और उसे सर
नवाकर वदा माँगने लगे (उसने कहा-) मने तुहारे बु-बल का भे पा लया,
English
Ramayana
RamCharitManas with Hindi
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रामचरतमानस अथ सहत
रामचरतमानस काड
रामचरतमानस पाठ
रामचरतमानस वमश
जसक लए वता ने मुझे भेजा था॥6
दोहा :
* राम काजु सबु करह तुह बल बु नधान।
आसष गई सो हरष चले हनुमान॥2
भावाथ:-तु ी रामचंजी का सब काय करोगे, यक तु बल-बु भंडार
हो। यह आशीवाद कर वह चली गई, तब हनुमान्जी हष होकर चले2
चौपाई :
* नसचर एक सधु मँ रहई। कर माया नभु खग गहई॥
जीव जंतु जे गगन उड़ाह। जल बलोक त परछाह॥1
भावाथ:-समु म एक रासी रहती थी। वह माया करक आकाश म उड़ते ए
पय को पकड़ लेती थी। आकाश म जो जीव-जंतु उड़ा करते थे, वह जल म
उनक परछा खकर॥1
* गहइ छाहँ सक सो उड़ाई। एह बध सदा गगनचर खाई॥
सोइ छल हनूमान् कहँ कहा। तासु कपट कप तुरतह चीहा॥2
भावाथ:-उस परछा को पकड़ लेती थी, जससे वे उड़ नह सकते थे (और जल
म गर पड़ते थे) इस कार वह सदा आकाश म उड़ने वाले जीव को खाया करती
थी। उसने वही छल हनुमान्जी से भी कया। हनुमान्जी ने तुरंत ही उसका कपट
पहचान लया॥2
* ताह मार मातसु बीरा। बारध पार गयउ मतधीरा॥
तहाँ जाइ खी बन सोभा। गुंजत चंचरीक मधु लोभा॥3
भावाथ:-पवनपु धीरबु वीर ी हनुमान्जी उसको मारकर समु पार गए।
वहाँ जाकर उहने वन क शोभा खी। मधु (पु रस) लोभ से भरे गुंजार कर
रहे थे3
* नाना त फल सुहाए। खग मृ बृंद ख मन भाए॥
सै बसाल ख एक आग ता पर धाइ चढ़ भय याग4
भावाथ:-अनेक कार वृ फल- से शोभत ह पी और पशु
समू को खकर तो वे मन म (बत ही) स ए। सामने एक वशाल पवत
खकर हनुमान्जी भय यागकर उस पर दौड़कर जा चढ़4
* उमा कछ कप अधकाई। भु ताप जो कालह खाई॥
गर पर चढ़ लंका तेह खी। कह जाइ अत ग बसेषी॥5
भावाथ:-(शवजी कहते ह-) हे उमा! इसम वानर हनुमान् क बड़ाई नह है
यह भु का ताप है, जो काल को भी खा जाता है पवत पर चढ़कर उहने
लंका खी। बत ही बड़ा कला है, कहा नह जाता॥5
* अत उतंग जलनध चँ पासा। कनक कोट कर परम कासा॥6
भावाथ:-वह अयंत चा है, उसक चार ओर समु है सोने परकोट
(चहारदवारी) का परम काश हो रहा है6
:
* कनक कोट बच मन सुंदरायतना घना।
चउह ह सुब बीथ चा पु ब बध बना॥
गज बाज खचर नकर पदचर रथ बथ को गनै
बप नसचर जू अतबल से बरनत नह बनै1
भावाथ:-वच मणय से जड़ा आ सोने का परकोटा है, उसक अंदर बत से
सुंदर-सुंदर घर ह चौराहे, बाजार, सुंदर माग और गलयाँ ह, सुंदर नगर बत
कार से सजा आ है हाथी, घोड़े, खचर समू तथा पैदल और रथ
समूह को कौन गन सकता है! अने प रास दल ह, उनक अयंत
बलवती सेना वणन करते नह बनती॥1
* बन बाग उपबन बाटका सर बाप सोहह।
नर नाग सु गंधब कया प मुन मन मोहह॥
कँ माल बसाल सै समान अतबल गजह।
नाना अखारे भरह बबध एक एक तजह॥2
भावाथ:-वन, बाग, उपवन (बगीचे), लवाड़ी, तालाब, एँ और बावलयाँ
सुशोभत ह मनु, नाग, वता और गंधव क कयाएँ अपने सदय से
मुनय भी मन को मोहे लेती ह कह पवत समान वशाल शरीर वाले बड़े
ही बलवान् म (पहलवान) गरज रहे ह वे अनेक अखाड़ म बत कार से
भड़ते और एक-सरे को ललकारते ह2
* कर जतन भट कोट बकट तन नगर चँ दस रछह।
कँ महष मानु धेनु खर अज खल नसाचर भछह॥
एह लाग तुलसीदास इ क कथा कछ एक है कही।
रघुबीर सर तीरथ सरीर याग गत पैहह सही॥3
भावाथ:-भयंकर शरीर वाले करोड़ योा यन करक (बड़ी सावधानी से) नगर
क चार दशा म (सब ओर से) रखवाली करते ह कह  रास भस,
मनुय, गाय, गदह और बकर को खा रहे ह तुलसीदास ने इनक कथा
इसीलए थोड़ी सी कही है क ये नय ही ी रामचंजी बाण पी तीथ
म शरीर को यागकर परमगत पावगे3
दोहा-
*पु रखवारे ख ब कप मन क बचार।
अत लघु प धर नस नगर कर पइसार॥3
भावाथ:-नगर बसंयक रखवाल को खकर हनुमान्जी ने मन म वचार
कया क अयंत छोटा प ध और रात समय नगर म वे क 3
चौपाई :
* मसक समान प कप धरी। लंकह चले सुमर नरहरी॥
नाम लंकनी एक नसचरी। सो कह चलेस मोह नदरी॥1
भावाथ:-हनुमान्जी मछड़ समान (छोटा सा) प धारण कर नर प से
लीला करने वाले भगवान् ी रामचंजी का मरण करक लंका को चले (लंका
ार पर) लंकनी नाम क एक रासी रहती थी। वह बोली- मेरा नरादर करक
(बना मुझसे पू) कहाँ चला जा रहा है?1
* जानेह नह मरमु सठ मोरा। मोर अहार जहाँ लग चोरा॥
मुठका एक महा कप हनी। धर बमत धरन ढनमनी॥2
भावाथ:-हे मूख! तूने मेरा भे नह जाना जहाँ तक (जतने) चोर ह, वे सब मेरे
आहार ह महाकप हनुमान्जी ने उसे एक घूँसा मारा, जससे वह खू क उलट
करती ई पृवी पर लढक पड़ी॥2
* पुन संभार उठ सो लंका। जोर पान कर बनय ससंका॥
जब रावनह  बर दहा। चलत बरंच कहा मोह चीहा॥3
भावाथ:-वह लंकनी फर अपने को संभालकर उठ और डर मारे हाथ
जोड़कर वनती करने लगी। (वह बोली-) रावण को जब ाजी ने वर दया था,
तब चलते समय उहने मुझे रास वनाश क यह पहचान बता द थी क-
3
* बकल होस त कप मारे तब जानेसु नसचर संघारे
तात मोर अत पु बता। खेउँ नयन राम कर ता॥4
भावाथ:-जब तू बंदर मारने से ाक हो जाए, तब तू रास का संहार आ
जान लेना। हे तात! मेरे बड़े पुय ह, जो म ी रामचंजी त (आप) को ने
से पाई॥4
दोहा :
* तात वग अपबग सु धरअ तुला एक अंग।
तू ताह सकल मल जो सु लव सतसंग॥4
भावाथ:-हे तात! वग और मो सब सुख को तराजू एक पलड़े म रखा
जाए, तो भी वे सब मलकर (सरे पलड़े पर रखे ए) उस सु बराबर नह हो
सकते, जो लव (ण) मा ससंग से होता है4
चौपाई :
* बस नगर कजे सब काजा। दयँ राख कोसलपु राजा॥
गरल सुधा रपु करह मताई। गोपद सधु अनल सतलाई॥1
भावाथ:-अयोयापुरी राजा ी रघुनाथजी को दय म रखे ए नगर म वे
करक सब काम कजए। उसक लए वष अमृ हो जाता है, शु मता करने
लगते ह, समु गाय खु बराबर हो जाता है, अन म शीतलता जाती
है1
* गड़ सुमे रेनु सम ताही। राम पा कर चतवा जाही॥
अत लघु प धरे हनुमाना। पैठा नगर सुमर भगवाना॥2
भावाथ:-और हे गड़जी! सुमे पवत उसक लए रज समान हो जाता है,
जसे ी रामचंजी ने एक बार पा करक लया। तब हनुमान्जी ने बत ही
छोटा प धारण कया और भगवान् का मरण करक नगर म वे कया॥2
* मंदर मंदर त कर सोधा। खे जहँ तहँ अगनत जोधा॥
गयउ दसानन मंदर माह। अत बच कह जात सो नाह॥3
भावाथ:-उहने एक-एक (ये) महल क खोज क। जहाँ-तहाँ असं योा
खे फर वे रावण महल म गए। वह अयंत वच था, जसका वणन नह हो
सकता॥3
* सयन कएँ खा कप तेही। मंदर मँ दख बैही॥
भवन एक पुन दख सुहावा। हर मंदर तहँ भ बनावा॥4
भावाथ:-हनुमान्जी ने उस (रावण) को शयन कए खा, परंतु महल म
जानकजी नह दखाई द। फर एक सुंदर महल दखाई दया। वहाँ (उसम)
भगवान् का एक अलग मंदर बना आ था॥4
दोहा :
* रामायु अंकत गृ सोभा बरन जाइ।
नव तुलसका बृंद तहँ ख हरष कपराई॥5
भावाथ:-वह महल ी रामजी आयु (धनु-बाण) च से अंकत था,
उसक शोभा वणन नह क जा सकती। वहाँ नवीन-नवीन तुलसी वृ-समूह
को खकर कपराज ी हनुमान्जी हष ए॥5
चौपाई :
* लंका नसचर नकर नवासा। इहाँ कहाँ सजन कर बासा॥
मन मँ तरक कर कप लागा। तेह समय बभीषनु जागा॥1
भावाथ:-लंका तो रास समू का नवास थान है यहाँ सजन (साधु पुष)
का नवास कहाँ? हनुमान्जी मन म इस कार तक करने लगे उसी समय
वभीषणजी जागे1
* राम राम तेह सुमरन कहा। दयँ हरष कप सजन चीहा॥
एह सन सठ करहउँ पहचानी। साधु ते होइ कारज हानी॥2
भावाथ:-उहने (वभीषण ने) राम नाम का मरण (उचारण) कया। हनमान्जी
ने उह सजन जाना और दय म हष ए। (हनुमान्जी ने वचार कया क)
इनसे हठ करक (अपनी ओर से ही) परचय क गा, यक साधु से काय क
हान नह होती। (यु लाभ ही होता है)2
* ब प धर बचन सुनाए। सुनत बभीषन उठ तहँ आए॥
कर नाम पूँछ सलाई। ब कह नज कथा बुझाई॥3
भावाथ:-ाण का प धरकर हनुमान्जी ने उह वचन सुनाए (पुकारा) सुनते
ही वभीषणजी उठकर वहाँ आए। णाम करक शल पूछ (और कहा क) हे
ाणद! अपनी कथा समझाकर कहए॥3
* क तुह हर दास महँ कोई। मोर दय ीत अत होई॥
क तुह रामु दन अनुरागी। आय मोह करन बड़भागी॥4
भावाथ:-या आप हरभ म से कोई ह? यक आपको खकर मेरे दय म
अयंत े उमड़ रहा है अथवा या आप दन से े करने वाले वयं ी
रामजी ही ह जो मुझे बड़भागी बनाने (घर-बै दशन कर ताथ करने) आए
ह?4
दोहा :
* तब हनुमंत कही सब राम कथा नज नाम।
सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमर गु ाम॥6
भावाथ:-तब हनुमान्जी ने ी रामचंजी क सारी कथा कहकर अपना नाम
बताया। सुनते ही दोन शरीर पुलकत हो गए और ी रामजी गु समूह
का मरण करक दोन मन (े और आनंद म) मन हो गए॥6
चौपाई :
* सुन पवनसु रहन हमारी। जम दसन मँ जीभ बचारी॥
तात कबँ मोह जान अनाथा। करहह पा भानु नाथा॥1
भावाथ:-(वभीषणजी ने कहा-) हे पवनपु! मेरी रहनी सुनो। म यहाँ वैसे ही
रहता ँ जैसे दाँत बीच म बेचारी जीभ। हे तात! मुझे अनाथ जानकर सूयक
नाथ ी रामचंजी या कभी मु पर पा करगे?1
*तामस तनु कछ साधन नाह। ीत पद सरोज मन माह॥
अब मोह भा भरोस हनुमंता। बनु हरकपा मलह नह संता॥2
भावाथ:-मेरा तामसी (रास) शरीर होने से साधन तो बनता नह और मन
म ी रामचंजी चरणकमल म े ही है, परंतु हे हनुमान्! अब मुझे वास
हो गया क ी रामजी क मु पर पा है, यक हर क पा बना संत
नह मलते2
* ज रघुबीर अनुह कहा। तौ तुह मोह दरसु हठ दहा॥
सुन बभीषन भु रीती। करह सदा सेवक पर ीत॥3
भावाथ:-जब ी रघुवीर ने पा क है, तभी तो आपने मुझे हठ करक (अपनी
ओर से) दशन दए ह (हनुमान्जी ने कहा-) हे वभीषणजी! सुनए, भु क यही
रीत है क वे सेवक पर सदा ही े कया करते ह3
* कह कवन म परम लीना। कप चंचल सबह बध हीना॥
ात ले जो नाम हमारा। तेह दन ताह मलै अहारा॥4
भावाथ:-भला कहए, म ही कौन बड़ा लीन ँ? (जात का) चंचल वानर ँ और
सब कार से नीच ँ, ातःकाल जो हम लोग (बंदर) का नाम ले ले तो उस दन
उसे भोजन मले4
दोहा :
* अस म अधम सखा सुनु मो पर रघुबीर।
कह पा सुमर गु भरे बलोचन नीर॥7
भावाथ:-हे सखा! सुनए, म ऐसा अधम ँ, पर ी रामचंजी ने तो मु पर भी
पा ही क है भगवान् गुण का मरण करक हनुमान्जी दोन ने म
(ेमाु का) जल भर आया॥7
चौपाई :
* जानतँ अस वाम बसारी। फरह ते काहे होह खारी॥
एह बध कहत राम गु ामा। पावा अनबाय बामा॥1
भावाथ:-जो जानते ए भी ऐसे वामी (ी रघुनाथजी) को भुलाकर (वषय
पीछ) भटकते फरते ह, वे ःखी य ह? इस कार ी रामजी गु समूह
को कहते ए उहने अनवचनीय (परम) शांत ात क॥1
* पुन सब कथा बभीषन कही। जेह बध जनकसुता तहँ रही॥
तब हनुमंत कहा सुनु ाता। खी चहउँ जानक माता॥2
भावाथ:-फर वभीषणजी ने, ी जानकजी जस कार वहाँ (लंका म) रहती
थ, वह सब कथा कही। तब हनुमान्जी ने कहा- हे भाई सुनो, म जानक माता को
खता चाहता ँ॥2
* जुगुत बभीषन सकल सुनाई। चले पवन सु बदा कराई॥
कर सोइ प गयउ पुन तहवाँ। बन असोक सीता रह जहवाँ॥3
भावाथ:-वभीषणजी ने (माता दशन क) सब युयाँ (उपाय) कह सुना।
तब हनुमान्जी वदा लेकर चले फर वही (पहले का मसक सरीखा) प धरकर
वहाँ गए, जहाँ अशोक वन म (वन जस भाग म) सीताजी रहती थ॥3
* ख मनह मँ क नामा। बैह बीत जात नस जामा॥
तनु सीस जटा एक बेनी। जपत दयँ रघुपत गु ेनी॥4
भावाथ:-सीताजी को खकर हनुमान्जी ने उह मन ही म णाम कया। उह बै
ही बै रा चार पहर बीत जाते ह शरीर बला हो गया है, सर पर जटा
क एक वेणी (लट) है दय म ी रघुनाथजी गु समूह का जाप (मरण)
करती रहती ह4
दोहा :
* नज पद नयन दएँ मन राम पद कमल लीन।
परम खी भा पवनसु ख जानक दन॥8
भावाथ:-ी जानकजी ने को अपने चरण म लगाए ए ह (नीचे क ओर
रही ह) और मन ी रामजी चरण कमल म लीन है जानकजी को दन
(ःखी) खकर पवनपु हनुमान्जी बत ही ःखी ए॥8
चौपाई :
* त पलव महँ रहा लुकाई। करइ बचार कर का भाई॥
तेह अवसर रावनु तहँ आवा। संग नार ब कएँ बनावा॥1
भावाथ:-हनुमान्जी वृ प म छप रहे और वचार करने लगे क हे भाई!
या क (इनका ःख से र क )? उसी समय बत सी य को साथ लए
सज-धजकर रावण वहाँ आया॥1
* ब बध खल सीतह समुझावा। साम दान भय भे खावा॥
कह रावनु सुनु सुमुख सयानी। मंदोदरी आद सब रानी॥2
भावाथ:-उस  ने सीताजी को बत कार से समझाया। साम, दान, भय और
भे दखलाया। रावण ने कहा- हे सुमुख! हे सयानी! सुनो! मंदोदरी आद सब
रानय को-2
* तव अनुचर करउँ पन मोरा। एक बार बलोक मम ओरा॥
तृ धर ओट कहत बैही। सुमर अवधपत परम सनेही॥3
भावाथ:-म तुहारी दासी बना गा, यह मेरा ण है तु एक बार मेरी ओर खो
तो सही! अपने परम नेही कोसलाधीश ी रामचंजी का मरण करक
जानकजी तनक क आड़ (परदा) करक कहने लग-3
* सुनु दसमु खोत कासा। कबँ क नलनी करइ बकासा॥
अस मन समुझु कहत जानक। खल सुध नह रघुबीर बान क॥4
भावाथ:-हे दशमु! सु, जुगनू काश से कभी कमलनी खल सकती है?
जानकजी फर कहती ह- तू (अपने लए भी) ऐसा ही मन म समझ ले रे !
तुझे ी रघुवीर बाण क खबर नह है4
* सठ सून हर आनेह मोही। अधम नलज लाज नह तोही॥5
भावाथ:-रे पापी! तू मुझे सूने म हर लाया है रे अधम! नलज! तुझे लजा नह
आती?5
दोहा :
* आपुह सुन खोत सम रामह भानु समान।
पष बचन सुन काढ़ अस बोला अत खसआन॥9
भावाथ:-अपने को जुगनू समान और रामचंजी को सूय समान सुनकर
और सीताजी कठोर वचन को सुनकर रावण तलवार नकालकर बड़े गुसे म
आकर बोला-9
चौपाई :
* सीता त मम अपमाना। कटहउँ तव सर कठन पाना॥
नाह सपद मानु मम बानी। सुमुख होत जीवन हानी॥1
भावाथ:-सीता! तूने मेरा अपनाम कया है म तेरा सर इस कठोर पाण से काट
डालूँगा। नह तो (अब भी) जद मेरी बात मान ले हे सुमुख! नह तो जीवन से
हाथ धोना पड़ेगा॥1
* याम सरोज दाम सम सुंदर। भु भु कर कर सम दसक धर॥
सो भु क तव अस घोरा। सुनु सठ अस वान पन मोरा॥2
भावाथ:-(सीताजी ने कहा-) हे दशीव! भु क भुजा जो याम कमल क माला
समान सुंदर और हाथी क सूँड समान (पु तथा वशाल) है, या तो वह
भुजा ही मेरे म पड़ेगी या तेरी भयानक तलवार ही। रे शठ! सु, यही मेरा
सचा ण है2
* चंहास ह मम परतापं। रघुपत बरह अनल संजातं॥
सीतल नसत बहस बर धारा। कह सीता ह मम ख भारा॥3
भावाथ:-सीताजी कहती ह- हे चंहास (तलवार)! ी रघुनाथजी वरह क
अन से उप मेरी बड़ी भारी जलन को तू हर ले, हे तलवार! तू शीतल, ती और
े धारा बहाती है (अथात् तेरी धारा डी और ते है), तू मेरे ःख बोझ को
हर ले3
चौपाई :
* सुनत बचन पुन मारन धावा। मयतनयाँ कह नीत बुझावा॥
कहेस सकल नसचर बोलाई। सीतह ब बध ास जाई॥4
भावाथ:-सीताजी ये वचन सुनते ही वह मारने दौड़ा। तब मय दानव क पुी
मदोदरी ने नीत कहकर उसे समझाया। तब रावण ने सब दासय को बुलाकर
कहा क जाकर सीता को बत कार से भय दखलाओ॥4
* मास दवस मँ कहा माना। तौ म मारब काढ़ पाना॥5
भावाथ:-यद महीने भर म यह कहा माने तो म इसे तलवार नकालकर मार
डालूँगा॥5
दोहा :
* भवन गयउ दसक धर इहाँ पसाचन बृंद।
सीतह ास खावह धरह प ब मंद॥10
भावाथ:-(य कहकर) रावण घर चला गया। यहाँ रासय समू बत से बुरे
प धरकर सीताजी को भय दखलाने लगे10
चौपाई :
* जटा नाम राछसी एका। राम चरन रत नपु बबेका॥
सबहौ बोल सुनाएस सपना। सीतह से कर हत अपना॥1
भावाथ:-उनम एक जटा नाम क रासी थी। उसक ी रामचंजी चरण
म ीत थी और वह ववे (ान) म नपु थी। उसने सब को बुलाकर अपना
व सुनाया और कहा- सीताजी क सेवा करक अपना कयाण कर लो॥1
* सपन बानर लंका जारी। जातुधान सेना सब मारी॥
खर आढ़ नगन दससीसा। मुंडत सर खंडत भु बीसा॥2
भावाथ:-व (मने खा क) एक बंदर ने लंका जला द। रास क सारी सेना
मार डाली गई। रावण नंगा है और गदहे पर सवार है उसक सर मुँडे ए ह, बीस
भुजाएँ कट ई ह2
* एह बध सो दछन दस जाई। लंका मनँ बभीषन पाई॥
नगर फरी रघुबीर दोहाई। तब भु सीता बोल पठाई॥3
भावाथ:-इस कार से वह दण (यमपुरी क) दशा को जा रहा है और मानो
लंका वभीषण ने पाई है नगर म ी रामचंजी क हाई फर गई। तब भु ने
सीताजी को बुला भेजा॥3
* यह सपना म कहउँ पुकारी। होइह स गए दन चारी॥
तासु बचन सुन ते सब डर। जनकसुता चरन पर॥4
भावाथ:-म पुकारकर (नय साथ) कहती ँ क यह व चार ( ही) दन
बाद स होकर रहेगा। उसक वचन सुनकर वे सब रासयाँ डर ग और
जानकजी चरण पर गर पड़॥4
दोहा :
* जहँ तहँ ग सकल तब सीता कर मन सोच।
मास दवस बीत मोह मारह नसचर पोच॥11
भावाथ:-तब (इसक बाद) वे सब जहाँ-तहाँ चली ग। सीताजी मन म सोच करने
लग क एक महीना बीत जाने पर नीच रास रावण मुझे मारेगा॥11
चौपाई :
* जटा सन बोल कर जोरी। मातु बपत संगन त मोरी॥
तज क बेग उपाई। सह बर अब नह सह जाई॥1
भावाथ:-सीताजी हाथ जोड़कर जटा से बोल- हे माता! तू मेरी वप क
संगनी है जद कोई ऐसा उपाय कर जससे म शरीर छोड़ सक वरह अस
हो चला है, अब यह सहा नह जाता॥1
* आन काठ रचु चता बनाई। मातु अनल पुन ह लगाई॥
स करह मम ीत सयानी। सुनै को वन सू सम बानी॥2
भावाथ:-काठ लाकर चता बनाकर सजा हे माता! फर उसम आग लगा हे
सयानी! तू मेरी ीत को स कर रावण क शू समान ःख ने वाली
वाणी कान से कौन सुने?2
* सुनत बचन पद गह समुझाएस। भु ताप बल सुजसु सुनाएस॥
नस अनल मल सुनु सुमारी। अस कह सो नज भवन सधारी।3
भावाथ:-सीताजी वचन सुनकर जटा ने चरण पकड़कर उह समझाया और
भु का ताप, बल और सुयश सुनाया। (उसने कहा-) हे सुमारी! सुनो रा
समय आग नह मलेगी। ऐसा कहकर वह अपने घर चली गई॥3
* कह सीता बध भा तकला। मलह पावक मटह सूला॥
खअत गट गगन अंगारा। अवन आवत एकउ तारा॥4
भावाथ:-सीताजी (मन ही मन) कहने लग- (या क ) वधाता ही वपरीत हो
गया। आग मलेगी, पीड़ा मटगी। आकाश म अंगारे कट दखाई रहे ह,
पर पृवी पर एक भी तारा नह आता॥4
* पावकमय सस वत आगी। मानँ मोह जान हतभागी॥
सुनह बनय मम बटप असोका। स नाम क ह मम सोका॥5
भावाथ:-चंमा अनमय है, कतु वह भी मानो मुझे हतभागनी जानकर आग
नह बरसाता। हे अशोक वृ! मेरी वनती सुन। मेरा शोक हर ले और अपना
(अशोक) नाम स कर॥5
*नूतन कसलय अनल समाना। ह अगन जन करह नदाना॥
ख परम बरहाक सीता। सो छन कपह कलप सम बीता॥6
भावाथ:-तेरे नए-नए कोमल पे अन समान ह अन , वरह रोग का अंत
मत कर (अथात् वरह रोग को बढ़ाकर सीमा तक पँचा) सीताजी को वरह से
परम ाक खकर वह ण हनुमान्जी को क समान बीता॥6
सोरठा :
* कप कर दयँ बचार द मुका डार तब।
जनु असोक अंगार द हरष उठ कर गहेउ॥12
भावाथ:-तब हनुमान्जी ने हदय म वचार कर (सीताजी सामने) अँगूठ डाल
द, मानो अशोक ने अंगारा दया। (यह समझकर) सीताजी ने हष होकर
उठकर उसे हाथ म ले लया॥12
चौपाई :
* तब खी मुका मनोहर। राम नाम अंकत अत सुंदर॥
चकत चतव मुदरी पहचानी। हरष बषाद दयँ अकलानी॥1
भावाथ:-तब उहने राम-नाम से अंकत अयंत सुंदर एवं मनोहर अँगूठ खी।
अँगूठ को पहचानकर सीताजी आयचकत होकर उसे खने लग और हष तथा
वषाद से दय म अकला उठ॥1
* जीत को सकइ अजय रघुराई। माया त अस रच नह जाई॥
सीता मन बचार कर नाना। मधु बचन बोले हनुमाना॥2
भावाथ:-(वे सोचने लग-) ी रघुनाथजी तो सवथा अजे ह, उह कौन जीत
सकता है? और माया से ऐसी (माया उपादान से सवथा रहत द, चमय)
अँगूठ बनाई नह जा सकती। सीताजी मन म अने कार वचार कर रही
थ। इसी समय हनुमान्जी मधु वचन बोले-2
* रामचं गु बरन लागा। सुनतह सीता कर ख भागा॥
लाग सुन वन मन लाई। आद त सब कथा सुनाई॥3
भावाथ:-वे ी रामचंजी गुण का वणन करने लगे, (जनक) सुनते ही
सीताजी का ःख भाग गया। वे कान और मन लगाकर उह सुनने लग।
हनुमान्जी ने आद से लेकर अब तक क सारी कथा कह सुनाई॥3
* वनामृ जेह कथा सुहाई। कही सो गट होत कन भाई॥
तब हनुमंत नकट चल गयऊ। फर बैठ मन बसमय भयऊ 4
भावाथ:-(सीताजी बोल-) जसने कान लए अमृ प यह सुंदर कथा कही,
वह हे भाई! कट य नह होता? तब हनुमान्जी पास चले गए। उह खकर
सीताजी फरकर (मु रकर) बै ग? उनक मन म आय आ॥4
* राम त म मातु जानक। स सपथ कनानधान क॥
यह मुका मातु म आनी। द राम तुह कहँ सहदानी॥5
भावाथ:-(हनुमान्जी ने कहा-) हे माता जानक म ी रामजी का त ँ।
कणानधान क सची शपथ करता ँ, हे माता! यह अँगूठ म ही लाया ँ। ी
रामजी ने मुझे आपक लए यह सहदानी (नशानी या पहचान) द है5
* नर बानरह संग क स कही कथा भइ संगत जैस6
भावाथ:-(सीताजी ने पूछा-) नर और वानर का संग कहो से आ? तब
हनुमानजी ने जैसे संग आ था, वह सब कथा कही॥6
दोहा :
* कप बचन से सुन उपजा मन बवास
जाना मन म बचन यह पासधु कर दास॥13
भावाथ:-हनुमान्जी ेमय वचन सुनकर सीताजी मन म वास उप
हो गया, उहने जान लया क यह मन, वचन और कम से पासागर ी
रघुनाथजी का दास है13
चौपाई :
* हरजन जान ीत अत गाढ़। सजल नयन पुलकावल बाढ़॥
बूड़त बरह जलध हनुमाना। भय तात मो कँ जलजाना॥1
भावाथ:-भगवान का जन (सेवक) जानकर अयंत गाढ़ ीत हो गई। ने म
(ेमाु का) जल भर आया और शरीर अयंत पुलकत हो गया (सीताजी ने
कहा-) हे तात हनुमान्! वरहसागर म बती ई मुझको तु जहाज ए॥1
* अब क सल जाउँ बलहारी। अनु सहत सु भवन खरारी॥
कोमलचत पाल रघुराई। कप ह हेतु धरी नठराई॥2
भावाथ:-म बलहारी जाती ँ, अब छोट भाई लमणजी सहत खर शु
सुखधाम भु का शल-मंगल कहो। ी रघुनाथजी तो कोमल दय और पालु
ह फर हे हनुमान्! उहने कस कारण यह नरता धारण कर ली है?2
* सहज बान सेवक सुखदायक। कबँक सुरत करत रघुनायक॥
कबँ नयन मम सीतल ताता। होइहह नरख याम मृ गाता॥3
भावाथ:-सेवक को सु ना उनक वाभावक बान है वे ी रघुनाथजी या
कभी मेरी भी याद करते ह? हे तात! या कभी उनक कोमल साँवले अंग को
खकर मेरे ने शीतल हगे?3
* बचनु आव नयन भरे बारी। अहह नाथ ह नपट बसारी॥
ख परम बरहाक सीता। बोला कप मृ बचन बनीता॥4
भावाथ:-(मुँह से) वचन नह नकलता, ने म (वरह आँसु का) जल भर
आया। (बड़े ःख से वे बोल-) हा नाथ! आपने मुझे बलक ही भुला दया!
सीताजी को वरह से परम ाक खकर हनुमान्जी कोमल और वनीत वचन
बोले-4
* मातु सल भु अनु समेता। तव ख खी सुपा नकता॥
जन जननी मानह जयँ ऊना। तुह ते ेमु राम ना॥5
भावाथ:-हे माता! सुंदर पा धाम भु भाई लमणजी सहत (शरीर से)
शल ह, परंतु आपक ःख से ःखी ह हे माता! मन म लान मानए (मन
छोटा करक ःख कजए) ी रामचंजी दय म आपसे ना े है5
दोहा :
* रघुपत कर संदसु अब सुनु जननी धर धीर।
अस कह कप गदगद भयउ भरे बलोचन नीर॥14
भावाथ:-हे माता! अब धीरज धरकर ी रघुनाथजी का संद सुनए। ऐसा
कहकर हनुमान्जी े से गद हो गए। उनक ने म (ेमाु का) जल भर
आया॥14
चौपाई :
* कहे राम बयोग तव सीता। मो कँ सकल भए बपरीता॥
नव त कसलय मनँ सानू कालनसा सम नस सस भानू1
भावाथ:-(हनुमान्जी बोले-) ी रामचंजी ने कहा है क हे सीते! तुहारे वयोग म
मेरे लए सभी पदाथ तक हो गए ह वृ नए-नए कोमल पे मानो अन
समान, रा कालरा समान, चंमा सूय समान॥1
*बलय बपन बन सरसा। बारद तपत ते जनु बरसा॥
जे हत रहे करत ते पीरा। उरग वास सम बध समीरा॥2
भावाथ:-और कमल वन भाल वन समान हो गए ह मे मानो खौलता
आ ते बरसाते ह जो हत करने वाले थे, वे ही अब पीड़ा ने लगे ह वध
(शीतल, मंद, सुगंध) वायु साँप ास समान (जहरीली और गरम) हो गई है
2
* कहे त कछ ख घट होई। काह कह यह जान कोई॥
त े कर मम अ तोरा। जानत या एक मनु मोरा॥3
भावाथ:-मन का ःख कह डालने से भी घट जाता है पर कँ कससे? यह
ःख कोई जानता नह। हे ये! मेरे और तेरे े का त (रहय) एक मेरा मन
ही जानता है3
* सो मनु सदा रहत तोह पाह। जानु ीत रसु एतनेह माह॥
भु संदसु सुनत बैही। मगन े तन सुध नह तेही॥4
भावाथ:-और वह मन सदा तेरे ही पास रहता है बस, मेरे े का सार इतने म ही
समझ ले भु का संद सुनते ही जानकजी े म मन हो ग। उह शरीर क
सु रही॥4
* कह कप दयँ धीर ध माता। सुम राम सेवक सुखदाता॥
उर आन रघुपत भुताई। सुन मम बचन तज कदराई॥5
भावाथ:-हनुमान्जी ने कहा- हे माता! दय म धैय धारण करो और सेवक को
सु ने वाले ी रामजी का मरण करो। ी रघुनाथजी क भुता को दय म
लाओ और मेरे वचन सुनकर कायरता छोड़ दो॥5
दोहा :
* नसचर नकर पतंग सम रघुपत बान सानु
जननी दयँ धीर ध जरे नसाचर जानु15
भावाथ:-रास समू पतंग समान और ी रघुनाथजी बाण अन
समान ह हे माता! दय म धैय धारण करो और रास को जला ही समझो॥
15
चौपाई :
* ज रघुबीर होत सुध पाई। करते नह बलंबु रघुराई॥
राम बान रब उएँ जानक। तम बथ कहँ जातुधान क॥1
भावाथ:-ी रामचंजी ने यद खबर पाई होती तो वे बलंब करते हे
जानकजी! रामबाण पी सूय उदय होने पर रास क सेना पी अंधकार
कहाँ रह सकता है?1
* अबह मातु म जाउँ लवाई। भु आयु नह राम दोहाई॥
कछ दवस जननी ध धीरा। कप सहत अइहह रघुबीरा॥2
भावाथ:-हे माता! म आपको अभी यहाँ से लवा जाऊ , पर ी रामचंजी क
शपथ है, मुझे भु (उन) क आा नह है (अतः) हे माता! दन और धीरज
धरो। ी रामचंजी वानर सहत यहाँ आएँगे2
*नसचर मार तोह लै जैहह तँ पु नारदाद जसु गैहह
ह सु कप सब तुहह समाना। जातुधान अत भट बलवाना॥3
भावाथ:-और रास को मारकर आपको ले जाएँगे नारद आद (ऋष-मुन)
तीन लोक म उनका यश गाएँगे (सीताजी ने कहा-) हे पु! सब वानर तुहारे ही
समान (नह-नह से) हगे, रास तो बड़े बलवान, योा ह3
* मोर दय परम संदहा। सुन कप गट क नज हा॥
कनक भूधराकार सरीरा। समर भयंकर अतबल बीरा॥4
भावाथ:-अतः मेरे दय म बड़ा भारी संद होता है (क तु जैसे बंदर रास को
से जीतगे!) यह सुनकर हनुमान्जी ने अपना शरीर कट कया। सोने पवत
(सुमे) आकार का (अयंत वशाल) शरीर था, जो यु म शु दय म
भय उप करने वाला, अयंत बलवान् और वीर था॥4
* सीता मन भरोस तब भयऊ। पुन लघु प पवनसु लयऊ॥5
भावाथ:-तब (उसे खकर) सीताजी मन म वास आ। हनुमान्जी ने फर
छोटा प धारण कर लया॥5
दोहा :
* सुनु माता साखामृ नह बल बु बसाल।
भु ताप त गड़ह खाइ परम लघु याल॥16
भावाथ:-हे माता! सुनो, वानर म बत बल-बु नह होती, परंतु भु ताप
से बत छोटा सप भी गड़ को खा सकता है (अयंत नबल भी महान् बलवान्
को मार सकता है)16
चौपाई :
* मन संतोष सुनत कप बानी। भगत ताप ते बल सानी॥
आसष द राम य जाना। हो तात बल सील नधाना॥1
भावाथ:-भ, ताप, ते और बल से सनी ई हनुमान्जी क वाणी सुनकर
सीताजी मन म संतोष आ। उहने ी रामजी य जानकर हनुमान्जी को
आशीवाद दया क हे तात! तु बल और शील नधान होओ॥1
*अजर अमर गुननध सु हो। करँ बत रघुनायक छो॥
करँ पा भु अस सुन काना। नभर े मगन हनुमाना॥2
भावाथ:-हे पु! तु अजर (बुढ़ापे से रहत), अमर और गुण खजाने होओ।
ी रघुनाथजी तु पर बत पा करभु पा करऐसा कान से सुनते ही
हनुमान्जी पूण े म मन हो गए॥2
*बार बार नाएस पद सीसा। बोला बचन जोर कर कसा॥
अब तक भयउँ म माता। आसष तव अमोघ बयाता॥3
भावाथ:-हनुमान्जी ने बार-बार सीताजी चरण म सर नवाया और फर हाथ
जोड़कर कहा- हे माता! अब म ताथ हो गया। आपका आशीवाद अमोघ
(अचू) है, यह बात स है3
*सुन मातु मोह अतसय भूखा। लाग ख सुंदर फल खा॥
सुनु सु करह बपन रखवारी। परम सुभट रजनीचर भारी॥4
भावाथ:-हे माता! सुनो, सुंदर फल वाले वृ को खकर मुझे बड़ी ही भू लग
आई है (सीताजी ने कहा-) हे बेटा! सुनो, बड़े भारी योा रास इस वन क
रखवाली करते ह4
* त कर भय माता मोह नाह। ज तुह सु मान मन माह॥5
भावाथ:-(हनुमान्जी ने कहा-) हे माता! यद आप मन म सु मान (स होकर)
आा तो मुझे उनका भय तो बलक नह है5
दोहा :
* ख बु बल नपु कप कहे जानक जा।
रघुपत चरन दयँ धर तात मधु फल खा॥17
भावाथ:-हनुमान्जी को बु और बल म नपु खकर जानकजी ने कहा-
जाओ। हे तात! ी रघुनाथजी चरण को दय म धारण करक मीठ फल
खाओ॥17
चौपाई :
* चले नाइ स पै बागा। फल खाएस त तोर लागा॥
रहे तहाँ ब भट रखवारे कछ मारेस कछ जाइ पुकारे1
भावाथ:-वे सीताजी को सर नवाकर चले और बाग म घु गए। फल खाए और
वृ को तोड़ने लगे वहाँ बत से योा रखवाले थे उनम से को मार डाला
और ने जाकर रावण से पुकार क-1
* नाथ एक आवा कप भारी। तेह असोक बाटका उजारी॥
खाएस फल अ बटप उपारे रछक मद मद मह डारे2
भावाथ:-(और कहा-) हे नाथ! एक बड़ा भारी बंदर आया है उसने अशोक
वाटका उजाड़ डाली। फल खाए, वृ को उखाड़ डाला और रखवाल को
मसल-मसलकर जमीन पर डाल दया॥2
* सुन रावन पठए भट नाना। तहह ख गज हनुमाना॥
सब रजनीचर कप संघारे गए पुकारत कछ अधमारे3
भावाथ:-यह सुनकर रावण ने बत से योा भेजे उह खकर हनुमान्जी ने
गजना क। हनुमान्जी ने सब रास को मार डाला, जो अधमरे थे, चलाते
ए गए॥3
* पुन पठयउ तेह अछकमारा। चला संग लै सुभट अपारा॥
आवत ख बटप गह तजा। ताह नपात महाधुन गजा॥4
भावाथ:-फर रावण ने अयकमार को भेजा। वह असं े योा को
साथ लेकर चला। उसे आते खकर हनुमान्जी ने एक वृ (हाथ म) लेकर
ललकारा और उसे मारकर महावन (बड़े जोर) से गजना क॥4
दोहा :
* कछ मारेस कछ मदस कछ मलएस धर धूर।
कछ पुन जाइ पुकारे भु मक बल भूर॥18
भावाथ:-उहने सेना म से को मार डाला और को मसल डाला और
को पकड़-पकड़कर धू म मला दया। ने फर जाकर पुकार क क हे
भु! बंदर बत ही बलवान् है18
चौपाई :
* सुन सु बध लंक रसाना। पठएस मेघनाद बलवाना॥
मारस जन सु बाँधेसु ताही। खअ कपह कहाँ कर आही॥1
भावाथ:-पु का वध सुनकर रावण ोधत हो उठा और उसने (अपने जे पु)
बलवान् मेघनाद को भेजा। (उससे कहा क-) हे पु! मारना नह उसे बाँध लाना।
उस बंदर को खा जाए क कहाँ का है1
* चला इंजत अतुलत जोधा। बंधु नधन सुन उपजा ोधा॥
कप खा दान भट आवा। कटकटाइ गजा अ धावा॥2
भावाथ:-इं को जीतने वाला अतुलनीय योा मेघनाद चला। भाई का मारा जाना
सु उसे ोध हो आया। हनुमान्जी ने खा क अबक भयानक योा आया है
तब वे कटकटाकर गज और दौड़े3
* अत बसाल त एक उपारा। बरथ क लंक मारा॥
रहे महाभट ताक संगा। गह गह कप मद नज अंगा॥3
भावाथ:-उहने एक बत बड़ा वृ उखाड़ लया और (उसक हार से) लंकर
रावण पु मेघनाद को बना रथ का कर दया। (रथ को तोड़कर उसे नीचे
पटक दया) उसक साथ जो बड़े-बड़े योा थे, उनको पकड़-पकड़कर
हनुमान्जी अपने शरीर से मसलने लगे3
* तहह नपात ताह सन बाजा। भरे जुगल मानँ गजराजा॥
मुठका मार चढ़ा त जाई। ताह एक छन मुछा आई॥4
भावाथ:-उन सबको मारकर फर मेघनाद से लड़ने लगे (लड़ते ए वे ऐसे मालू
होते थे) मानो दो गजराज (े हाथी) भड़ गए ह। हनुमान्जी उसे एक घूँसा
मारकर वृ पर जा चढ़ उसको णभर लए मूछा गई॥4
* उठ बहोर कहस ब माया। जीत जाइ भंजन जाया॥5
भावाथ:-फर उठकर उसने बत माया रची, परंतु पवन पु उससे जीते नह
जाते5
दोहा :
*  अ तेह साँधा कप मन क बचार।
ज सर मानउँ महमा मटइ अपार॥19
भावाथ:-अंत म उसने ा का संधान (योग) कया, तब हनुमान्जी ने मन म
वचार कया क यद ा को नह मानता ँ तो उसक अपार महमा मट
जाएगी॥19
चौपाई :
* बान कप कँ तेह मारा। परतँ बार कटक संघारा॥
तेह खा कप मुछत भयऊ। नागपास बाँधेस लै गयऊ॥1
भावाथ:-उसने हनुमान्जी को बाण मारा, (जसक लगते ही वे वृ से नीचे
गर पड़े), परंतु गरते समय भी उहने बत सी सेना मार डाली। जब उसने खा
क हनुमान्जी मूछ हो गए ह, तब वह उनको नागपाश से बाँधकर ले गया॥1
* जासु नाम जप सुन भवानी। भव बंधन काटह नर यानी॥
तासु त क बंध त आवा। भु कारज लग कपह बँधावा॥2
भावाथ:-(शवजी कहते ह-) हे भवानी सुनो, जनका नाम जपकर ानी (ववेक)
मनु संसार (जम-मरण) बंधन को काट डालते ह, उनका त कह बंधन म
सकता है? कतु भु काय लए हनुमान्जी ने वयं अपने को बँधा
लया॥2
* कप बंधन सुन नसचर धाए। कौतु लाग सभाँ सब आए॥
दसमु सभा दख कप जाई। कह जाइ कछ अत भुताई॥3
भावाथ:-बंदर का बाँधा जाना सुनकर रास दौड़े और कौतु लए (तमाशा
खने लए) सब सभा म आए। हनुमान्जी ने जाकर रावण क सभा खी।
उसक अयंत भुता (ऐय) कही नह जाती॥3
* कर जोर सु दसप बनीता। भृट बलोकत सकल सभीता॥
ख ताप कप मन संका। जम अहगन मँ गड़ असंका॥4
भावाथ:-वता और दपाल हाथ जोड़े बड़ी नता साथ भयभीत ए सब
रावण क भ ताक रहे ह (उसका ख रहे ह) उसका ऐसा ताप खकर भी
हनुमान्जी मन म जरा भी डर नह आ। वे ऐसे नःशंख खड़े रहे, जैसे सप
समू म गड़ नःशंख नभय) रहते ह4
दोहा :
* कपह बलोक दसानन बहसा कह बाद।
सु बध सुरत क पुन उपजा दयँ बसाद॥20
भावाथ:-हनुमान्जी को खकर रावण वचन कहता आ खू हँसा। फर पु
वध का मरण कया तो उसक दय म वषाद उप हो गया॥20
चौपाई :
* कह लंक कवन त कसा। ह बल घालेह बन खीसा॥
क ध वन सुनेह नह मोही। खउँ अत असंक सठ तोही॥1
भावाथ:-लंकापत रावण ने कहा- रे वानर! तू कौन है? कसक बल पर तूने वन
को उजाड़कर न कर डाला? या तूने कभी मुझे (मेरा नाम और यश) कान से
नह सुना? रे शठ! म तुझे अयंत नःशंख रहा ँ॥1
* मारे नसचर ह अपराधा। क सठ तोह ान कइ बाधा॥
सुनु रावन ांड नकाया। पाइ जासु बल बरचत माया॥2
भावाथ:-तूने कस अपराध से रास को मारा? रे मूख! बता, या तुझे ाण जाने
का भय नह है? (हनुमान्जी ने कहा-) हे रावण! सु, जनका बल पाकर माया
संपूण ांड समूह क रचना करती है,2
* जाक बल बरंच हर ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा॥
जा बल सीस धरत सहसानन। अंडकोस समे गर कानन॥3
भावाथ:-जनक बल से हे दशशीश! ा, वणु, महे (मशः) सृ का सृजन,
पालन और संहार करते ह, जनक बल से सहमु (फण) वाले शेषजी पवत
और वनसहत समत ांड को सर पर धारण करते ह,3
* धरइ जो बबध सुराता। तुह से सठ सखावनु दाता॥
हर कोद कठन जेह भंजा। तेह समे नृ दल मद गंजा॥4
भावाथ:-जो वता क रा लए नाना कार क धारण करते ह और
जो तुहारे जैसे मूख को शा ने वाले ह, जहने शवजी कठोर धनु को
तोड़ डाला और उसी साथ राजा समू का गव चूण कर दया॥4
* खर षन सरा अ बाली। बधे सकल अतुलत बलसाली॥5
भावाथ:-जहने खर, षण, शरा और बाल को मार डाला, जो सब सब
अतुलनीय बलवान् थे,5
दोहा :
* जाक बल लवले त जते चराचर झार।
तास त म जा कर हर आने य नार॥21
भावाथ:-जनक लेशमा बल से तुमने समत चराचर जगत् को जीत लया और
जनक य पनी को तु (चोरी से) हर लाए हो, म उह का त ँ॥21
चौपाई :
* जानउँ म तुहार भुताई। सहसबा सन परी लराई॥
समर बाल सन कर जसु पावा। सुन कप बचन बहस बहरावा॥1
भावाथ:-म तुहारी भुता को खू जानता ँ सहबा से तुहारी लड़ाई ई थी
और बाल से यु करक तुमने यश ात कया था। हनुमान्जी (माम) वचन
सुनकर रावण ने हँसकर बात टाल द॥1
* खायउँ फल भु लागी भूँखा। कप सुभाव त तोरेउँ खा॥
सब परम य वामी। मारह मोह मारग गामी॥2
भावाथ:-हे (रास ) वामी मुझे भू लगी थी, (इसलए) मने फल खाए और
वानर वभाव कारण वृ तोड़े हे (नशाचर ) मालक! सबको परम
य है माग पर चलने वाले () रास जब मुझे मारने लगे2
*ज मोह मारा ते म मारे तेह पर बाँधेउँ तनयँ तुहारे
मोह कछ बाँधे कइ लाजा। क चहउँ नज भु कर काजा॥3
भावाथ:-तब जहने मुझे मारा, उनको मने भी मारा। उस पर तुहारे पु ने
मुझको बाँध लया (कतु), मुझे अपने बाँधे जाने क भी लजा नह है म तो
अपने भु का काय करना चाहता ँ॥3
*बनती करउँ जोर कर रावन। सुन मान तज मोर सखावन॥
ख तुह नज लह बचारी। म तज भज भगत भय हारी॥4
भावाथ:-हे रावण! म हाथ जोड़कर तुमसे वनती करता ँ, तु अभमान छोड़कर
मेरी सीख सुनो। तु अपने पव का वचार करक खो और म को
छोड़कर भ भयहारी भगवान् को भजो॥4
* जाक डर अत काल डेराई। जो सु असु चराचर खाई॥
तास बय कबँ नह कजै मोरे कह जानक दजै5
भावाथ:-जो वता, रास और समत चराचर को खा जाता है, वह काल भी
जनक डर से अयंत डरता है, उनसे कदाप वै करो और मेरे कहने से
जानकजी को दो॥5
दोहा :
* नतपाल रघुनायक कना सधु खरार।
गएँ सरन भु राखह तव अपराध बसार॥22
भावाथ:-खर शु ी रघुनाथजी शरणागत रक और दया समु ह
शरण जाने पर भु तुहारा अपराध भुलाकर तुह अपनी शरण म रख लगे22
चौपाई :
* राम चरन पंकज उर धर। लंका अचल राजु तुह कर॥
रष पुलत जसु बमल मयंका। तेह सस मँ जन हो कलंका॥1
भावाथ:-तु ी रामजी चरण कमल को दय म धारण करो और लंका का
अचल रा करो। ऋष पुलयजी का यश नमल चंमा समान है उस चंमा
म तु कलंक बनो॥1
* राम नाम बनु गरा सोहा। खु बचार याग मद मोहा॥
बसन हीन नह सोह सुरारी। सब भूषन भूषत बर नारी॥2
भावाथ:-राम नाम बना वाणी शोभा नह पाती, मद-मोह को छोड़, वचारकर
खो। हे वता शु! सब गहन से सजी ई सुंदरी ी भी कपड़ बना
(नंगी) शोभा नह पाती॥2
* राम बमु संपत भुताई। जाइ रही पाई बनु पाई॥
सजल मू ज सरत नाह। बरष गए पुन तबह सुखाह॥3
भावाथ:-रामवमु पुष क संप और भुता रही ई भी चली जाती है और
उसका पाना पाने समान है जन नदय मू म कोई जलोत नह है
(अथात् जह वल बरसात ही आसरा है) वे वषा बीत जाने पर फर तुरंत ही
सू जाती ह3
* सुनु दसक कहउँ पन रोपी। बमु राम ाता नह कोपी॥
संकर सहस बनु अज तोही। सकह राख राम कर ोही॥4
भावाथ:-हे रावण! सुनो, म ता करक कहता ँ क रामवमु क रा करने
वाला कोई भी नह है हजार शंकर, वणु और ा भी ी रामजी साथ ोह
करने वाले तुमको नह बचा सकते4
दोहा :
* मोहमू ब सू द याग तम अभमान।
भज राम रघुनायक पा सधु भगवान॥23
भावाथ:-मोह ही जनका मू है ऐसे (अानजनत), बत पीड़ा ने वाले,
तमप अभमान का याग कर दो और रघु वामी, पा समु भगवान्
ी रामचंजी का भजन करो॥23
चौपाई :
* जदप कही कप अत हत बानी। भगत बबे बरत नय सानी॥
बोला बहस महा अभमानी। मला हमह कप गु बड़ यानी॥1
भावाथ:-यप हनुमान्जी ने भ, ान, वैराय और नीत से सनी ई बत ही
हत क वाणी कही, तो भी वह महान् अभमानी रावण बत हँसकर (ंय से)
बोला क हम यह बंदर बड़ा ानी गु मला!1
* मृयु नकट आई खल तोही। लागेस अधम सखावन मोही॥
उलटा होइह कह हनुमाना। मतम तोर गट म जाना॥2
भावाथ:-रे ! तेरी मृयु नकट गई है अधम! मुझे शा ने चला है
हनुमान्जी ने कहा- इससे उलटा ही होगा (अथात् मृयु तेरी नकट आई है, मेरी
नह) यह तेरा मतम (बु का ) है, मने य जान लया है2
* सुन कप बचन बत खसआना। बेग हर मू कर ाना॥
सुनत नसाचर मारन धाए। सचव सहत बभीषनु आए॥3
भावाथ:-हनुमान्जी वचन सुनकर वह बत ही पत हो गया। (और बोला-)
अरे! इस मूख का ाण शी ही य नह हर लेते? सुनते ही रास उह मारने दौड़े
उसी समय मंय साथ वभीषणजी वहाँ पँचे3
* नाइ सीस कर बनय बता। नीत बरोध मारअ ता॥
आन कछ करअ गोसाँई। सबह कहा मं भल भाई॥4
भावाथ:-उहने सर नवाकर और बत वनय करक रावण से कहा क त को
मारना नह चाहए, यह नीत व है हे गोसा। कोई सरा दया जाए।
सबने कहा- भाई! यह सलाह उम है4
* सुनत बहस बोला दसक धर। अंग भंग कर पठइअ बंदर॥5
भावाथ:-यह सुनते ही रावण हँसकर बोला- अछा तो, बंदर को अंग-भंग करक
भे (लौटा) दया जाए॥5
दोहा :
* कप ममता पूँछ पर सबह कहउँ समुझाइ।
ते बोर पट बाँध पुन पावक लगाइ॥24
भावाथ:-म सबको समझाकर कहता ँ क बंदर क ममता पूँछ पर होती है अतः
ते म कपड़ा बोकर उसे इसक पूँछ म बाँधकर फर आग लगा दो॥24
चौपाई :
* पूँछहीन बानर तहँ जाइह। तब सठ नज नाथह लइ आइह॥
ज कहस बत बड़ाई। खउ म त भुताई॥1
भावाथ:-जब बना पूँछ का यह बंदर वहाँ (अपने वामी पास) जाएगा, तब यह
मूख अपने मालक को साथ ले आएगा। जनक इसने बत बड़ाई क है, म जरा
उनक भुता (सामय) तो खू!1
* बचन सुनत कप मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद म जाना॥
जातुधान सुन रावन बचना। लागे रच मू सोइ रचना॥2
भावाथ:-यह वचन सुनते ही हनुमान्जी मन म मुकराए (और मन ही मन बोले
क) म जान गया, सरवतीजी (इसे ऐसी बु ने म) सहायक ई ह रावण
वचन सुनकर मूख रास वही (पूँछ म आग लगाने क) तैयारी करने लगे2
* रहा नगर बसन घृ तेला। बाढ़ पूँछ क कप खेला॥
कौतु कहँ आए पुरबासी। मारह चरन करह ब हाँसी॥3
भावाथ:-(पूँछ लपेटने म इतना कपड़ा और घी-ते लगा क) नगर म कपड़ा,
घी और ते नह रह गया। हनुमान्जी ने ऐसा खे कया क पूँछ बढ़ गई (लंबी
हो गई) नगरवासी लोग तमाशा खने आए। वे हनुमान्जी को पै से ठोकर मारते
ह और उनक हँसी करते ह3
* बाजह ढोल ह सब तारी। नगर र पुन पूँछ जारी॥
पावक जरत ख हनुमंता। भयउ परम लघुप तुरंता॥4
भावाथ:-ढोल बजते ह, सब लोग तालयाँ पीटते ह हनुमान्जी को नगर म
फराकर, फर पूँछ म आग लगा द। अन को जलते ए खकर हनुमान्जी तुरंत
ही बत छोट प म हो गए॥4
* नबुक चढ़ कप कनक अटार। भ सभीत नसाचर नार॥5
भावाथ:-बंधन से नकलकर वे सोने क अटारय पर जा चढ़ उनको खकर
रास क याँ भयभीत हो ग॥5
दोहा :
* हर ेरत तेह अवसर चले मत उनचास।
अहास कर गजा कप बढ़ लाग अकास॥25
भावाथ:-उस समय भगवान् क ेरणा से उनचास पवन चलने लगे हनुमान्जी
अहास करक गज और बढ़कर आकाश से जा लगे25
चौपाई :
* बसाल परम हआई। मंदर त मंदर चढ़ धाई॥
जरइ नगर भा लोग बहाला। झपट लपट ब कोट कराला॥1
भावाथ:- बड़ी वशाल, परंतु बत ही हक (तली) है वे दौड़कर एक
महल से सरे महल पर चढ़ जाते ह नगर जल रहा है लोग बेहाल हो गए ह आग
क करोड़ भयंकर लपट झपट रही ह1
*तात मातु हा सुनअ पुकारा। एह अवसर को हमह उबारा॥
हम जो कहा यह कप नह होई। बानर प धर सु कोई॥2
भावाथ:-हाय बपा! हाय मैया! इस अवसर पर हम कौन बचाएगा? (चार ओर)
यही पुकार सुनाई पड़ रही है हमने तो पहले ही कहा था क यह वानर नह है,
वानर का प धरे कोई वता है!2
* साधु अवया कर फलु ऐसा। जरइ नगर अनाथ कर जैसा॥
जारा नग नमष एक माह। एक बभीषन कर गृ नाह॥3
भावाथ:-साधु अपमान का यह फल है क नगर, अनाथ नगर क तरह जल
रहा है हनुमान्जी ने एक ही ण म सारा नगर जला डाला। एक वभीषण का घर
नह जलाया॥3
* ताकर त अनल जेह सरजा। जरा सो तेह कारन गरजा॥
उलट पलट लंका सब जारी। द परा पुन सधु मझारी॥4
भावाथ:-(शवजी कहते ह-) हे पावती! जहने अन को बनाया, हनुमान्जी
उह त ह इसी कारण वे अन से नह जले हनुमान्जी ने उलट-पलटकर
(एक ओर से सरी ओर तक) सारी लंका जला द। फर वे समु म पड़े
दोहा :
* पूँछ बुझाइ खोइ म धर लघु प बहोर।
जनकसुता आग ठाढ़ भयउ कर जोर॥26
भावाथ:-पूँछ बुझाकर, थकावट र करक और फर छोटा सा प धारण कर
हनुमान्जी ी जानकजी सामने हाथ जोड़कर जा खड़े ए॥26
चौपाई :
* मातु मोह दजे कछ चीहा। जैस रघुनायक मोह दहा॥
चूड़ामन उतार तब दयऊ। हरष समे पवनसु लयऊ॥1
भावाथ:-(हनुमान्जी ने कहा-) हे माता! मुझे कोई च (पहचान) दजए, जैसे ी
रघुनाथजी ने मुझे दया था। तब सीताजी ने चूड़ामण उतारकर द। हनुमान्जी ने
उसको हषपूवक ले लया॥1
* कहे तात अस मोर नामा। सब कार भु पूरनकामा॥
दन दयाल बर संभारी। हर नाथ सम संकट भारी॥2
भावाथ:-(जानकजी ने कहा-) हे तात! मेरा णाम नवेदन करना और इस कार
कहना- हे भु! यप आप सब कार से पूण काम ह (आपको कसी कार क
कामना नह है), तथाप दन (ःखय) पर दया करना आपका वरद है (और म
दन ँ) अतः उस वरद को याद करक, हे नाथ! मेरे भारी संकट को र कजए॥
2
* तात ससु कथा सनाए। बान ताप भुह समुझाए॥
मास दवस मँ नाथु आवा। तौ पुन मोह जअत नह पावा॥3
भावाथ:-हे तात! इंपु जयंत क कथा (घटना) सुनाना और भु को उनक बाण
का ताप समझाना (मरण कराना) यद महीने भर म नाथ आए तो फर मुझे
जीती पाएँगे3
* क कप ह बध राख ाना। तुह तात कहत अब जाना॥
तोह ख सीतल भइ छाती। पुन मो कँ सोइ दनु सो राती॥4
भावाथ:-हे हनुमान्! कहो, म कस कार ाण रखू! हे तात! तु भी अब जाने को
कह रहे हो। तुमको खकर छाती डी ई थी। फर मुझे वही दन और वही
रात!4
दोहा :
* जनकसुतह समुझाइ कर ब बध धीरजु दह।
चरन कमल स नाइ कप गवनु राम पह कह॥27
भावाथ:-हनुमान्जी ने जानकजी को समझाकर बत कार से धीरज दया और
उनक चरणकमल म सर नवाकर ी रामजी पास गमन कया॥27
चौपाई :
* चलत महाधुन गजस भारी। गभ वह सुन नसचर नारी॥
नाघ सधु एह पारह आवा। सबद कलकला कप सुनावा॥1
भावाथ:-चलते समय उहने महावन से भारी गजन कया, जसे सुनकर रास
क य गभ गरने लगे समु लाँघकर वे इस पार आए और उहने वानर
को कलकला श (हषवन) सुनाया॥1
* हरषे सब बलोक हनुमाना। नूतन जम कप तब जाना॥
मु स तन ते बराजा। कहेस रामचं कर काजा॥2
भावाथ:-हनुमान्जी को खकर सब हष हो गए और तब वानर ने अपना नया
जम समझा। हनुमान्जी का मु स है और शरीर म ते वराजमान है,
(जससे उहने समझ लया क) ये ी रामचंजी का काय कर आए ह2
* मले सकल अत भए सुखारी। तलफत मीन पाव जम बारी॥
चले हरष रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतहासा॥3
भावाथ:-सब हनुमान्जी से मले और बत ही सुखी ए, जैसे तड़पती ई मछली
को जल मल गया हो। सब हष होकर नए-नए इतहास (वृांत) पूछते- कहते
ए ी रघुनाथजी पास चले3
* तब मधुबन भीतर सब आए। अंगद संमत मधु फल खाए॥
रखवारे जब बरजन लागे मु हार हनत सब भागे4
भावाथ:-तब सब लोग मधुवन भीतर आए और अंगद क समत से सबने
मधु फल (या मधु और फल) खाए। जब रखवाले बरजने लगे, तब घूँस क मार
मारते ही सब रखवाले भाग 4
दोहा :
* जाइ पुकारे ते सब बन उजार जुबराज।
सुन सुीव हरष कप कर आए भु काज॥28
भावाथ:-उन सबने जाकर पुकारा क युवराज अंगद वन उजाड़ रहे ह यह
सुनकर सुीव हष ए क वानर भु का काय कर आए ह28
चौपाई :
* ज होत सीता सुध पाई। मधुबन फल सकह क काई॥
एह बध मन बचार कर राजा। आइ गए कप सहत समाजा॥1
भावाथ:-यद सीताजी क खबर पाई होती तो या वे मधुवन फल खा
सकते थे? इस कार राजा सुीव मन म वचार कर ही रहे थे क समाज सहत
वानर गए॥1
* आइ सब नावा पद सीसा। मले सब अत े कपीसा॥
पूँछ सल सल पद खी। राम पाँ भा काजु बसेषी॥2
भावाथ:-(सबने आकर सुीव चरण म सर नवाया। कपराज सुीव सभी से
बड़े े साथ मले उहने शल पूछ, (तब वानर ने उर दया-) आपक
चरण दशन से सब शल है ी रामजी क पा से वशे काय आ (काय
म वशे सफलता ई है)2
* नाथ काजु कहे हनुमाना। राखे सकल कप ाना॥
सुन सुीव बर तेह मले कप सहत रघुपत पह चलेऊ॥3
भावाथ:-हे नाथ! हनुमान ने सब काय कया और सब वानर ाण बचा लए।
यह सुनकर सुीवजी हनुमान्जी से फर मले और सब वानर समे ी
रघुनाथजी पास चले3
* राम कप जब आवत खा। कए काजु मन हरष बसेषा॥
फटक सला बै ौ भाई। परे सकल कप चरन जाई॥4
भावाथ:-ी रामजी ने जब वानर को काय कए ए आते खा तब उनक मन म
वशे हष आ। दोन भाई फटक शला पर बै थे सब वानर जाकर उनक
चरण पर गर पड़े4
दोहा :
* ीत सहत सब भ रघुपत कना पुंज॥
पूछ सल नाथ अब सल ख पद ज॥29
भावाथ:-दया क राश ी रघुनाथजी सबसे े सहत गले लगकर मले और
शल पूछ। (वानर ने कहा-) हे नाथ! आपक चरण कमल दशन पाने से अब
शल है29
चौपाई :
* जामवंत कह सुनु रघुराया। जा पर नाथ कर तुह दाया॥
ताह सदा सु सल नरंतर। सु नर मुन स ता ऊपर॥1
भावाथ:-जाबवान् ने कहा- हे रघुनाथजी! सुनए। हे नाथ! जस पर आप दया
करते ह, उसे सदा कयाण और नरंतर शल है वता, मनुय और मुन सभी
उस पर स रहते ह1
* सोइ बजई बनई गु सागर। तासु सुजसु ैलोक उजागर॥
भु क पा भयउ सबु काजू जम हमार सुफल भा आजू2
भावाथ:-वही वजयी है, वही वनयी है और वही गुण का समु बन जाता है
उसी का सुंदर यश तीन लोक म काशत होता है भु क पा से सब काय
आ। आज हमारा जम सफल हो गया॥2
* नाथ पवनसु क जो करनी। सहसँ मु जाइ सो बरनी॥
पवनतनय चरत सुहाए। जामवंत रघुपतह सुनाए॥3
भावाथ:-हे नाथ! पवनपु हनुमान् ने जो करनी क, उसका हजार मुख से भी
वणन नह कया जा सकता। तब जाबवान् ने हनुमान्जी सुंदर चर (काय)
ी रघुनाथजी को सुनाए॥3
* सुनत पानध मन अत भाए। पुन हनुमान हरष हयँ लाए॥
कह तात ह भाँत जानक। रहत करत रछा वान क॥4
भावाथ:-(वे चर) सुनने पर पानध ी रामचंदजी मन को बत ही अछ
लगे उहने हष होकर हनुमान्जी को फर दय से लगा लया और कहा- हे
तात! कहो, सीता कस कार रहती और अपने ाण क रा करती ह?4
दोहा :
* नाम पाह दवस नस यान तुहार कपाट।
लोचन नज पद जंत जाह ान ह बाट॥30
भावाथ:-(हनुमान्जी ने कहा-) आपका नाम रात-दन पहरा ने वाला है, आपका
यान ही कवाड़ है ने को अपने चरण म लगाए रहती ह, यही ताला लगा है,
फर ाण जाएँ तो कस माग से?30
चौपाई :
* चलत मोह चूड़ामन दह। रघुपत दयँ लाइ सोइ लीही॥
नाथ जुगल लोचन भर बारी। बचन कहे कछ जनककमारी॥1
भावाथ:-चलते समय उहने मुझे चूड़ामण (उतारकर) द। ी रघुनाथजी ने उसे
लेकर दय से लगा लया। (हनुमान्जी ने फर कहा-) हे नाथ! दोन ने म जल
भरकर जानकजी ने मुझसे वचन कहे-1
* अनु समे गहे भु चरना। दन बंधु नतारत हरना॥
मन म बचन चरन अनुरागी। ह अपराध नाथ ह यागी॥2
भावाथ:-छोट भाई समे भु चरण पकड़ना (और कहना क) आप दनबंधु
ह, शरणागत ःख को हरने वाले ह और म मन, वचन और कम से आपक
चरण क अनुरागणी ँ। फर वामी (आप) ने मुझे कस अपराध से याग
दया?2
* अवगु एक मोर म माना। बछरत ान क पयाना॥
नाथ सो नयन को अपराधा। नसरत ान करह हठ बाधा॥3
भावाथ:-(हाँ) एक दोष म अपना (अवय) मानती ँ क आपका वयोग होते ही
मेरे ाण नह चले गए, कतु हे नाथ! यह तो ने का अपराध है जो ाण
नकलने म हठपूवक बाधा ते ह3
* बरह अगन तनु तू समीरा। वास जरइ छन माह सरीरा॥
नयन वह जलु नज हत लागी। जर पाव बरहागी॥4
भावाथ:-वरह अन है, शरीर ई है और ास पवन है, इस कार (अन और
पवन का संयोग होने से) यह शरीर णमा म जल सकता है, परंतु ने अपने
हत लए भु का वप खकर (सुखी होने लए) जल (आँसू) बरसाते ह,
जससे वरह क आग से भी जलने नह पाती॥4
* सीता अत बपत बसाला। बनह कह भल दनदयाला॥5
भावाथ:-सीताजी क वप बत बड़ी है हे दनदयालु! वह बना कही ही
अछ है (कहने से आपको बड़ा ले होगा)5
दोहा :
* नमष नमष कनानध जाह कलप सम बीत।
बेग चलअ भु आनअ भु बल खल दल जीत॥31
भावाथ:-हे कणानधान! उनका एक-एक पल क समान बीतता है अतः
हे भु! तुरंत चलए और अपनी भुजा बल से  दल को जीतकर
सीताजी को ले आइए॥31
चौपाई :
* सुन सीता ख भु सु अयना। भर आए जल राजव नयना॥
बचन कायँ मन मम गत जाही। सपनेँ बूझअ बपत क ताही॥1
भावाथ:-सीताजी का ःख सुनकर सु धाम भु कमल ने म जल भर
आया (और वे बोले-) मन, वचन और शरीर से जसे मेरी ही गत (मेरा ही आय)
है, उसे या व म भी वप हो सकती है?1
* कह हनुमंत बपत भु सोई। जब तव सुमरन भजन होई॥
तक बात भु जातुधान क। रपुह जीत आनबी जानक॥2
भावाथ:-हनुमान्जी ने कहा- हे भु! वप तो वही (तभी) है जब आपका
भजन-मरण हो। हे भो! रास क बात ही कतनी है? आप शु को जीतकर
जानकजी को ले आवगे2
* सुनु कप तोह समान उपकारी। नह कोउ सु नर मुन तनुधारी॥
त उपकार कर का तोरा। सनमु होइ सकत मन मोरा॥3
भावाथ:-(भगवान् कहने लगे-) हे हनुमान्! सु, तेरे समान मेरा उपकारी वता,
मनु अथवा मुन कोई भी शरीरधारी नह है म तेरा युपकार (बदले म
उपकार) तो या क , मेरा मन भी तेरे सामने नह हो सकता॥3
* सुनु सु तोह उरन म नाह। खेउँ कर बचार मन माह॥
पुन पुन कपह चतव सुराता। लोचन नीर पुलक अत गाता॥4
भावाथ:-हे पु! सु, मने मन म (खू) वचार करक लया क म तुझसे
उऋण नह हो सकता। वता रक भु बार-बार हनुमान्जी को रहे ह
ने म ेमाु का जल भरा है और शरीर अयंत पुलकत है4
दोहा :
* सुन भु बचन बलोक मु गात हरष हनुमंत।
चरन परे ेमाक ाह ाह भगवंत॥32
भावाथ:-भु वचन सुनकर और उनक (स) मु तथा (पुलकत) अंग को
खकर हनुमान्जी हष हो गए और े म वकल होकरहे भगवन्! मेरी रा
करो, रा करोकहते ए ी रामजी चरण म गर पड़े32
चौपाई :
* बार बार भु चहइ उठावा। े मगन तेह उठब भावा॥
भु कर पंकज कप सीसा। सुमर सो दसा मगन गौरीसा॥1
भावाथ:-भु उनको बार-बार उठाना चाहते ह, परंतु े म बे ए हनुमान्जी
को चरण से उठना सुहाता नह। भु का करकमल हनुमान्जी सर पर है उस
थत का मरण करक शवजी ेममन हो गए॥1
* सावधान मन कर पुन संकर। लागे कहन कथा अत सुंदर॥
कप उठाई भु दयँ लगावा। कर गह परम नकट बैठावा॥2
भावाथ:-फर मन को सावधान करक शंकरजी अयंत सुंदर कथा कहने लगे-
हनुमान्जी को उठाकर भु ने दय से लगाया और हाथ पकड़कर अयंत नकट
बैठा लया॥2
* क कप रावन पालत लंका। ह बध दहे ग अत बंका॥
भु स जाना हनुमाना। बोला बचन बगत अभमाना॥3
भावाथ:-हे हनुमान्! बताओ तो, रावण ारा सुरत लंका और उसक बड़े
बाँक कले को तुमने कस तरह जलाया? हनुमान्जी ने भु को स जाना और
वे अभमानरहत वचन बोले- 3
* साखामग बड़ मनुसाई। साखा त साखा पर जाई॥
नाघ सधु हाटकपु जारा। नसचर गन बध बपन उजारा॥4
भावाथ:-बंदर का बस, यही बड़ा पुषाथ है क वह एक डाल से सरी डाल पर
चला जाता है मने जो समु लाँघकर सोने का नगर जलाया और रासगण को
मारकर अशोक वन को उजाड़ डाला,4
* सो सब तव ताप रघुराई। नाथ कछ मोर भुताई॥5
भावाथ:-यह सब तो हे ी रघुनाथजी! आप ही का ताप है हे नाथ! इसम मेरी
भुता (बड़ाई) भी नह है5
दोहा :
* ता कँ भु कछ अगम नह जा पर तुह अनुल।
तव भावँ बड़वानलह जार सकइ खलु तूल॥33
भावाथ:-हे भु! जस पर आप स ह, उसक लए भी कठन नह है
आपक भाव से ई (जो वयं बत जद जल जाने वाली वतु है) बड़वानल
को नय ही जला सकती है (अथात् असंभव भी संभव हो सकता है)3
चौपाई :
* नाथ भगत अत सुखदायनी। पा कर अनपायनी॥
सुन भु परम सरल कप बानी। एवमतु तब कहे भवानी॥1
भावाथ:-हे नाथ! मुझे अयंत सु ने वाली अपनी नल भ पा करक
दजए। हनुमान्जी क अयंत सरल वाणी सुनकर, हे भवानी! तब भु ी
रामचंजी नेएवमतु’ (ऐसा ही हो) कहा॥1
* उमा राम सुभाउ जेह जाना। ताह भजनु तज भाव आना॥
यह संबाद जासु उर आवा। रघुपत चरन भगत सोइ पावा॥2
भावाथ:-हे उमा! जसने ी रामजी का वभाव जान लया, उसे भजन छोड़कर
सरी बात ही नह सुहाती। यह वामी-सेवक का संवाद जसक दय म गया,
वही ी रघुनाथजी चरण क भ पा गया॥2
* सुन भु बचन कहह कप बृंदा। जय जय जय पाल सुखक दा॥
तब रघुपत कपपतह बोलावा। कहा चल कर कर बनावा॥3
भावाथ:-भु वचन सुनकर वानरगण कहने लगे- पालु आनंदक ी रामजी
क जय हो जय हो, जय हो! तब ी रघुनाथजी ने कपराज सुीव को बुलाया
और कहा- चलने क तैयारी करो॥3
*अब बलंबु कारन कजे तुरंत कप कहँ आयसु दजे
कौतु ख सुमन ब बरषी। नभ त भवन चले सु हरषी॥4
भावाथ:-अब वलंब कस कारण कया जाए। वानर को तुरंत आा दो।
(भगवान् क) यह लीला (रावणवध क तैयारी) खकर, बत से बरसाकर
और हष होकर वता आकाश से अपने-अपने लोक को चले4
दोहा :
* कपपत बेग बोलाए आए जूथप जूथ।
नाना बरन अतु बल बानर भालु बथ॥34
भावाथ:-वानरराज सुीव ने शी ही वानर को बुलाया, सेनापतय समू
गए। वानर-भालु झुंड अने रंग ह और उनम अतुलनीय बल है34
चौपाई :
* भु पद पंकज नावह सीसा। गजह भालु महाबल कसा॥
खी राम सकल कप सेना। चतइ पा कर राजव नैना॥1
भावाथ:-वे भु चरण कमल म सर नवाते ह महान् बलवान् रीछ और वानर
गरज रहे ह ी रामजी ने वानर क सारी सेना खी। तब कमल ने से
पापूवक उनक ओर  डाली॥1
* राम पा बल पाइ कपदा। भए पछजु मनँ गरदा॥
हरष राम तब क पयाना। सगु भए सुंदर सु नाना॥2
भावाथ:-राम पा का बल पाकर े वानर मानो पंखवाले बड़े पवत हो गए।
तब ी रामजी ने हष होकर थान () कया। अने सुंदर और शु शक
ए॥2
* जासु सकल मंगलमय कती। तासु पयान सगु यह नीती॥
भु पयान जाना बैह। फरक बाम अँग जनु कह ह॥3
भावाथ:-जनक कत सब मंगल से पूण है, उनक थान समय शक होना,
यह नीत है (लीला क मयादा है) भु का थान जानकजी ने भी जान लया।
उनक बाएँ अंग फड़क-फड़ककर मानो कहे ते थे (क ी रामजी रहे ह)3
* जोइ जोइ सगु जानकह होई। असगु भयउ रावनह सोई॥
चला कटक को बरन पारा। गजह बानर भालु अपारा॥4
भावाथ:-जानकजी को जो-जो शक होते थे, वही-वही रावण लए अपशक
ए। सेना चली, उसका वणन कौन कर सकता है? असं वानर और भालू
गजना कर रहे ह4
* नख आयु गर पादपधारी। चले गगन मह इछाचारी॥
हरनाद भालु कप करह। डगमगाह दगज चकरह॥5
भावाथ:-नख ही जनक श ह, वे इछानुसार (सव बेरोक-टोक) चलने वाले
रीछ-वानर पवत और वृ को धारण कए कोई आकाश माग से और कोई पृवी
पर चले जा रहे ह वे स समान गजना कर रहे ह (उनक चलने और गजने
से) दशा हाथी वचलत होकर चघाड़ रहे ह5
:
* चकरह दगज डोल मह गर लोल सागर खरभरे
मन हरष सभ गंधब सु मुन नाग कनर ख टरे
कटकटह मक बकट भट ब कोट कोट धावह।
जय राम बल ताप कोसलनाथ गु गन गावह॥1
भावाथ:-दशा हाथी चघाड़ने लगे, पृवी डोलने लगी, पवत चंचल हो गए
(काँपने लगे) और समु खलबला उठ गंधव, वता, मुन, नाग, कर सब
सब मन म हष एक (अब) हमारे ःख टल गए। अनेक करोड़ भयानक
वानर योा कटकटा रहे ह और करोड़ ही दौड़ रहे हबल ताप कोसलनाथ
ी रामचंजी क जय होऐसा पुकारते ए वे उनक गुणसमूह को गा रहे ह1
* सह सक भार उदार अहपत बार बारह मोहई।
गह दसन पुन पुन कमठ पृ कठोर सो कम सोहई॥
रघुबीर चर यान थत जान परम सुहावनी।
जनु कमठ खपर सपराज सो लखत अबचल पावनी॥2
भावाथ:-उदार (परम े एवं महान्) सपराज शेषजी भी सेना का बोझ नह सह
सकते, वे बार-बार मोहत हो जाते (घबड़ा जाते) ह और पुनः-पुनः कछप क
कठोर पीठ को दाँत से पकड़ते ह ऐसा करते (अथात् बार-बार दाँत को गड़ाकर
कछप क पीठ पर लकर सी खचते ए) वे से शोभा रहे ह मानो ी
रामचंजी क सुंदर थान याा को परम सुहावनी जानकर उसक अचल पव
कथा को सपराज शेषजी कछप क पीठ पर लख रहे ह॥2
दोहा :
* एह बध जाइ पानध उतरे सागर तीर।
जहँ तहँ लागे खान फल भालु बपु कप बीर॥35
भावाथ:-इस कार पानधान ी रामजी समु तट पर जा उतरे अनेक रीछ-
वानर वीर जहाँ-तहाँ फल खाने लगे35
चौपाई :
*उहाँ नसाचर रहह ससंका। जब त जार गयउ कप लंका॥
नज नज गृहँ सब करह बचारा। नह नसचर उबारा।1
भावाथ:-वहाँ (लंका म) जब से हनुमान्जी लंका को जलाकर गए, तब से रास
भयभीत रहने लगे अपने-अपने घर म सब वचार करते ह क अब रास
क रा (का कोई उपाय) नह है1
* जासु त बल बरन जाई। तेह आएँ पु कवन भलाई॥
त सन सुन पुरजन बानी। मंदोदरी अधक अकलानी॥2
भावाथ:-जसक त का बल वणन नह कया जा सकता, उसक वयं नगर म
आने पर कौन भलाई है (हम लोग क बड़ी बुरी दशा होगी)? तय से
नगरवासय वचन सुनकर मंदोदरी बत ही ाक हो गई॥2
* रहस जोर कर पत पग लागी। बोली बचन नीत रस पागी॥
करष हर सन परहर। मोर कहा अत हत हयँ धर॥3
भावाथ:-वह एकांत म हाथ जोड़कर पत (रावण) चरण लगी और नीतरस म
पगी ई वाणी बोली- हे यतम! ी हर से वरोध छोड़ दजए। मेरे कहने को
अयंत ही हतकर जानकर दय म धारण कजए॥3
* समुझत जासु त कइ करनी। वह गभ रजनीचर घरनी॥
तासु नार नज सचव बोलाई। पठव जो चह भलाई॥4
भावाथ:-जनक त क करनी का वचार करते ही (मरण आते ही) रास क
य गभ गर जाते ह, हे यारे वामी! यद भला चाहते ह, तो अपने मंी को
बुलाकर उसक साथ उनक ी को भे दजए॥4
दोहा :
*तव कमल बपन खदाई। सीता सीत नसा सम आई॥
सुन नाथ सीता बनु दह हत तुहार संभु अज कह5
भावाथ:-सीता आपक पी कमल वन को ःख ने वाली जाड़े क रा
समान आई है हे नाथ। सुनए, सीता को दए (लौटाए) बना शभु और ा
कए भी आपका भला नह हो सकता॥5
दोहा :
* राम बान अह गन सरस नकर नसाचर भेक।
जब लग सत तब लग जतनु कर तज क॥36
भावाथ:-ी रामजी बाण सप समू समान ह और रास समू
मढक समान। जब तक वे इह स नह लेते (नगल नह जाते) तब तक हठ
छोड़कर उपाय कर लीजए॥36
चौपाई :
* वन सुनी सठ ता कर बानी। बहसा जगत बदत अभमानी॥
सभय सुभाउ नार कर साचा। मंगल मँ भय मन अत काचा॥1
भावाथ:-मूख और जगत स अभमानी रावण कान से उसक वाणी सुनकर
खू हँसा (और बोला-) य का वभाव सचमु ही बत डरपोक होता है
मंगल म भी भय करती हो। तुहारा मन (दय) बत ही कचा (कमजोर) है1
* ज आवइ मक कटकाई। जअह बचारे नसचर खाई॥
पह लोकप जाक ासा। तासु नार सभीत बड़ हासा॥2
भावाथ:-यद वानर क सेना आवेगी तो बेचारे रास उसे खाकर अपना जीवन
नवाह करगे लोकपाल भी जसक डर से काँपते ह, उसक ी डरती हो, यह
बड़ी हँसी क बात है2
* अस कह बहस ताह उर लाई। चले सभाँ ममता अधकाई॥
फमंदोदरी दयँ कर चता। भयउ पर बध बपरीता॥3
भावाथ:-रावण ने ऐसा कहकर हँसकर उसे दय से लगा लया और ममता
बढ़ाकर (अधक ने दशाकर) वह सभा म चला गया। मंदोदरी दय म चता
करने लगी क पत पर वधाता तक हो गए॥3
* बै सभाँ खबर अस पाई। सधु पार सेना सब आई॥
बूझेस सचव उचत मत कह। ते सब हँसे म कर रह॥4
भावाथ:-य ही वह सभा म जाकर बैठा, उसने ऐसी खबर पाई क शु क सारी
सेना समु उस पार गई है, उसने मंय से पूछा क उचत सलाह कहए
(अब या करना चाहए?) तब वे सब हँसे और बोले क चु कए रहए (इसम
सलाह क कौन सी बात है?)4
* जते सुरासु तब म नाह। नर बानर ह लेखे माह॥5
भावाथ:-आपने वता और रास को जीत लया, तब तो म ही नह
आ। फर मनु और वानर कस गनती म ह?5
दोहा :
* सचव बै गु तीन ज य बोलह भय आस
राज धम तन तीन कर होइ बेगह नास॥37
भावाथ:-मंी, वै और गु- ये तीन यद (असता ) भय या (लाभ क)
आशा से (हत क बात कहकर) य बोलते ह (ठक सुहाती कहने लगते ह),
तो (मशः) रा, शरीर और धम- इन तीन का शी ही नाश हो जाता है37
चौपाई :
* सोइ रावन कँ बनी सहाई। अतुत करह सुनाइ सुनाई॥
अवसर जान बभीषनु आवा। ाता चरन सीसु तेह नावा॥1
भावाथ:-रावण लए भी वही सहायता (संयोग) बनी है मंी उसे सुना-
सुनाकर (मुँह पर) तुत करते ह (इसी समय) अवसर जानकर वभीषणजी
आए। उहने बड़े भाई चरण म सर नवाया॥1
* पुन स नाइ बै नज आसन। बोला बचन पाइ अनुसासन॥
जौ पाल पूँछ मोह बाता। मत अनुप कहउँ हत ताता॥2
भावाथ:-फर से सर नवाकर अपने आसन पर बै गए और आा पाकर ये
वचन बोले- हे पाल जब आपने मुझसे बात (राय) पूछ ही है, तो हे तात! म
अपनी बु अनुसार आपक हत क बात कहता ँ-2
* जो आपन चाहै कयाना। सुजसु सुमत सु गत सु नाना॥
सो परनार ललार गोसा। तजउ चउथ चंद क ना॥3
भावाथ:-जो मनु अपना कयाण, सुंदर यश, सुबु, शु गत और नाना
कार सु चाहता हो, वह हे वामी! परी ललाट को चौथ चंमा क
तरह याग (अथात् जैसे लोग चौथ चंमा को नह खते, उसी कार परी
का मु ही खे)3
* चौदह भुवन एक पत होई। भू ोह तइ नह सोई॥
गु सागर नागर नर जोऊ। अलप लोभ भल कहइ कोऊ॥4
भावाथ:-चौदह भुवन का एक ही वामी हो, वह भी जीव से वै करक ठहर
नह सकता (न हो जाता है) जो मनु गुण का समु और चतु हो, उसे चाहे
थोड़ा भी लोभ य हो, तो भी कोई भला नह कहता॥4
दोहा :
* काम ोध मद लोभ सब नाथ नरक पंथ।
सब परहर रघुबीरह भज भजह जेह संत॥38
भावाथ:-हे नाथ! काम, ोध, मद और लोभ- ये सब नरक राते ह, इन सबको
छोड़कर ी रामचंजी को भजए, जह संत (सपुष) भजते ह38
चौपाई :
* तात राम नह नर भूपाला। भुवनेवर काल कर काला॥
 अनामय अज भगवंता। यापक अजत अनाद अनंता॥1
भावाथ:-हे तात! राम मनुय ही राजा नह ह वे समत लोक वामी और
काल भी काल ह वे (संपूण ऐय, यश, ी, धम, वैराय एवं ान भंडार)
भगवान् ह, वे नरामय (वकाररहत), अजमे, ापक, अजे, अनाद और अनंत
 ह1
* गो ज धेनु हतकारी। पा सधु मानु तनुधारी॥
जन रंजन भंजन खल ाता। बे धम रछक सुनु ाता॥2
भावाथ:-उन पा समु भगवान् ने पृवी, ाण, गो और वता का हत
करने लए ही मनु शरीर धारण कया है हे भाई! सुनए, वे सेवक को
आनंद ने वाले,  समू का नाश करने वाले और वे तथा धम क रा
करने वाले ह2
* ताह बय तज नाइअ माथा। नतारत भंजन रघुनाथा॥
नाथ भु कँ बैही। भज राम बनु हेतु सनेही॥3
भावाथ:-वै यागकर उह मतक नवाइए। वे ी रघुनाथजी शरणागत का ःख
नाश करने वाले ह हे नाथ! उन भु (सवर) को जानकजी दजए और बना
ही कारण ने करने वाले ी रामजी को भजए॥3
दोहा :
* सरन गएँ भु ता यागा। बव ोह अघ जेह लागा॥
जासु नाम य ताप नसावन। सोइ भु गट समुझु जयँ रावन॥4
भावाथ:-जसे संपूण जगत् से ोह करने का पाप लगा है, शरण जाने पर भु
उसका भी याग नह करते जनका नाम तीन ताप का नाश करने वाला है, वे
ही भु (भगवान्) मनुय प म कट ए ह हे रावण! दय म यह समझ
लीजए॥4
दोहा :
* बार बार पद लागउँ बनय करउँ दससीस।
परहर मान मोह मद भज कोसलाधीस॥39क॥
भावाथ:-हे दशशीश! म बार-बार आपक चरण लगता ँ और वनती करता ँ क
मान, मोह और मद को यागकर आप कोसलपत ी रामजी का भजन कजए॥
39 ()
* मुन पुलत नज स सन कह पठई यह बात।
तुरत सो म भु सन कही पाइ सुअवस तात॥39ख॥
भावाथ:-मुन पुलयजी ने अपने शय हाथ यह बात कहला भेजी है हे
तात! सुंदर अवसर पाकर मने तुरंत ही वह बात भु (आप) से कह द॥39 ()
चौपाई :
* मायवंत अत सचव सयाना। तासु बचन सुन अत सु माना॥
तात अनु तव नीत बभूषन। सो उर धर जो कहत बभीषन॥1
भावाथ:-मायवान् नाम का एक बत ही बुमान मंी था। उसने उन
(वभीषण) वचन सुनकर बत सु माना (और कहा-) हे तात! आपक छोट
भाई नीत वभूषण (नीत को भूषण प म धारण करने वाले अथात् नीतमान्)
ह वभीषण जो कह रहे ह उसे दय म धारण कर लीजए॥1
* रपु उतकरष कहत सठ दोऊ। र कर इहाँ हइ कोऊ॥
मायवंत गह गयउ बहोरी। कहइ बभीषनु पुन कर जोरी॥2
भावाथ:-(रावन ने कहा-) ये दोन मूख शु क महमा बखान रहे ह यहाँ कोई
है? इह र करो ! तब मायवान् तो घर लौट गया और वभीषणजी हाथ
जोड़कर फर कहने लगे-2
* सुमत मत सब उर रहह। नाथ पुरान नगम अस कहह॥
जहाँ सुमत तहँ संपत नाना। जहाँ मत तहँ बपत नदाना॥3
भावाथ:-हे नाथ! पुराण और वे ऐसा कहते ह क सुबु (अछ बु) और
बु (खोट बु) सबक दय म रहती है, जहाँ सुबु है, वहाँ नाना कार क
संपदाएँ (सु क थत) रहती ह और जहाँ बु है वहाँ परणाम म वप
(ःख) रहती है3
* तव उर मत बसी बपरीता। हत अनहत मान रपु ीता॥
कालरात नसचर री। तेह सीता पर ीत घनेरी॥4
भावाथ:-आपक दय म उलट बु बसी है इसी से आप हत को अहत
और शु को म मान रहे ह जो रास लए कालरा ( समान) ह,
उन सीता पर आपक बड़ी ीत है4
दोहा :
* तात चरन गह मागउँ राख मोर लार।
सीता राम कँ अहत होइ तुहारा॥40
भावाथ:-हे तात! म चरण पकड़कर आपसे भीख माँगता ँ (वनती करता ँ) क
आप मेरा लार रखए (मु बालक आह को नेहपूवक वीकार कजए) ी
रामजी को सीताजी दजए, जसम आपका अहत हो॥40
चौपाई :
* बु पुरान ुत संमत बानी। कही बभीषन नीत बखानी॥
सुनत दसानन उठा रसाई। खल तोह नकट मृयु अब आई॥1
भावाथ:-वभीषण ने पंडत, पुराण और वेद ारा समत (अनुमोदत) वाणी से
नीत बखानकर कही। पर उसे सुनते ही रावण ोधत होकर उठा और बोला क
रे ! अब मृयु तेरे नकट गई है!1
* जअस सदा सठ मोर जआवा। रपु कर पछ मू तोह भावा॥
कहस खल अस को जग माह। भु बल जाह जता म नाह॥2
भावाथ:-अरे मूख! तू जीता तो है सदा मेरा जलाया आ (अथात् मेरे ही अ से
पल रहा है), पर हे मू! प तुझे शु का ही अछा लगता है अरे ! बता ,
जगत् म ऐसा कौन है जसे मने अपनी भुजा बल से जीता हो?2
* मम पु बस तपस पर ीती। सठ मलु जाइ तहह क नीती॥
अस कह कहेस चरन हारा। अनु गहे पद बारह बारा॥3
भावाथ:-मेरे नगर म रहकर े करता है तपवय पर। मूख! उह से जा मल
और उह को नीत बता। ऐसा कहकर रावण ने उह लात मारी, परंतु छोट भाई
वभीषण ने (मारने पर भी) बार-बार उसक चरण ही पकड़े3
* उमा संत कइ इहइ बड़ाई। मंद करत जो करइ भलाई॥
तुह पतु सरस भलेह मोह मारा। रामु भज हत नाथ तुहारा॥4
भावाथ:-(शवजी कहते ह-) हे उमा! संत क यही बड़ाई (महमा) है क वे बुराई
करने पर भी (बुराई करने वाले क) भलाई ही करते ह (वभीषणजी ने कहा-)
आप मेरे पता समान ह, मुझे मारा सो तो अछा ही कया, परंतु हे नाथ!
आपका भला ी रामजी को भजने म ही है4
* सचव संग लै नभ पथ गयऊ। सबह सुनाइ कहत अस भयऊ॥5
भावाथ:-(इतना कहकर) वभीषण अपने मंय को साथ लेकर आकाश माग म
गए और सबको सुनाकर वे ऐसा कहने लगे-5
दोहा :
* रामु सयसंक भु सभा कालबस तोर।
म रघुबीर सरन अब जाउँ जन खोर॥41
भावाथ:-ी रामजी स संक एवं (सवसमथ) भु ह और (हे रावण) तुहारी
सभा काल वश है अतः म अब ी रघुवीर क शरण जाता ँ, मुझे दोष
ना॥41
चौपाई :
* अस कह चला बभीषनु जबह। आयू हीन भए सब तबह॥
साधु अवया तुरत भवानी। कर कयान अखल हानी॥1
भावाथ:-ऐसा कहकर वभीषणजी य ही चले, य ही सब रास आयुहीन हो
गए। (उनक मृयु नत हो गई) (शवजी कहते ह-) हे भवानी! साधु का
अपमान तुरंत ही संपूण कयाण क हान (नाश) कर ता है1
* रावन जबह बभीषन यागा। भयउ बभव बनु तबह अभागा॥
चले हरष रघुनायक पाह। करत मनोरथ ब मन माह॥2
भावाथ:-रावण ने जस ण वभीषण को यागा, उसी ण वह अभागा वैभव
(ऐय) से हीन हो गया। वभीषणजी हष होकर मन म अनेक मनोरथ करते
ए ी रघुनाथजी पास चले2
* खहउँ जाइ चरन जलजाता। अन मृल सेवक सुखदाता॥
जे पद परस तरी रषनारी। डक कानन पावनकारी॥3
भावाथ:-(वे सोचते जाते थे-) म जाकर भगवान् कोमल और लाल वण सुंदर
चरण कमल दशन क गा, जो सेवक को सु ने वाले ह, जन चरण का
पश पाकर ऋष पनी अहया तर ग और जो डकवन को पव करने वाले
ह3
* जे पद जनकसुताँ उर लाए। कपट रंग संग धर धाए॥
हर उर सर सरोज पद जेई। अहोभाय म खहउँ तेई॥4
भावाथ:-जन चरण को जानकजी ने दय म धारण कर रखा है, जो कपटमृ
साथ पृवी पर (उसे पकड़ने को) दौड़े थे और जो चरणकमल साात् शवजी
दय पी सरोवर म वराजते ह, मेरा अहोभाय है क उह को आज म
खूँगा॥4
दोहा :
* ज पाय पाक भरतु रहे मन लाइ।
ते पद आजु बलोकहउँ इ नयन अब जाइ॥42
भावाथ:-जन चरण क पाका म भरतजी ने अपना मन लगा रखा है, अहा!
आज म उह चरण को अभी जाकर इन ने से खूँगा॥42
चौपाई :
* ऐह बध करत से बचारा। आयउ सपद स एह पारा॥
कप बभीषनु आवत खा। जाना कोउ रपु त बसेषा॥1
भावाथ:-इस कार ेमसहत वचार करते ए वे शी ही समु इस पार
(जधर ी रामचंजी क सेना थी) गए। वानर ने वभीषण को आते खा तो
उहने जाना क शु का कोई खास त है1
* ताह राख कपीस पह आए। समाचार सब ताह सुनाए॥
कह सुीव सुन रघुराई। आवा मलन दसानन भाई॥2
भावाथ:-उह (पहरे पर) ठहराकर वे सुीव पास आए और उनको सब
समाचार कह सुनाए। सुीव ने (ी रामजी पास जाकर) कहा- हे रघुनाथजी!
सुनए, रावण का भाई (आप से) मलने आया है2
* कह भु सखा बूझए काहा। कहइ कपीस सुन नरनाहा॥
जान जाइ नसाचर माया। कामप ह कारन आया॥3
भावाथ:-भु ी रामजी ने कहा- हे म! तु या समझते हो (तुहारी या राय
है)? वानरराज सुीव ने कहा- हे महाराज! सुनए, रास क माया जानी नह
जाती। यह इछानुसार प बदलने वाला (छली) जाने कस कारण आया है
3
* भे हमार ले सठ आवा। राखअ बाँध मोह अस भावा॥
सखा नीत तुह नीक बचारी। मम पन सरनागत भयहारी॥4
भावाथ:-(जान पड़ता है) यह मूख हमारा भे लेने आया है, इसलए मुझे तो यही
अछा लगता है क इसे बाँध रखा जाए। (ी रामजी ने कहा-) हे म! तुमने नीत
तो अछ वचारी, परंतु मेरा ण तो है शरणागत भय को हर लेना!4
* सुन भु बचन हरष हनुमाना। सरनागत बछल भगवाना॥5
भावाथ:-भु वचन सुनकर हनुमान्जी हष ए (और मन ही मन कहने लगे
क) भगवान् से शरणागतवसल (शरण म आए ए पर पता क भाँत े
करने वाले) ह5
दोहा :
* सरनागत कँ जे तजह नज अनहत अनुमान।
ते नर पावँर पापमय तहह बलोकत हान॥43
भावाथ:-(ी रामजी फर बोले-) जो मनु अपने अहत का अनुमान करक
शरण म आए ए का याग कर ते ह, वे पामर (ु) ह, पापमय ह, उह खने म
भी हान है (पाप लगता है)43
चौपाई :
* कोट ब बध लागह जा। आएँ सरन तजउँ नह ता॥
सनमु होइ जीव मोह जबह। जम कोट अघ नासह तबह॥1
भावाथ:-जसे करोड़ ाण क हया लगी हो, शरण म आने पर म उसे भी
नह यागता। जीव य ही मेरे समु होता है, य ही उसक करोड़ जम
पाप न हो जाते ह1
* पापवंत कर सहज सुभाऊ। भजनु मोर तेह भाव काऊ॥
ज पै  दय सोइ होई। मोर सनमु आव क सोई॥2
भावाथ:-पापी का यह सहज वभाव होता है क मेरा भजन उसे कभी नह
सुहाता। यद वह (रावण का भाई) नय ही  दय का होता तो या वह मेरे
समु सकता था?2
* नमल मन जन सो मोह पावा। मोह कपट छल छ भावा॥
भे ले पठवा दससीसा। तबँ कछ भय हान कपीसा॥3
भावाथ:-जो मनु नमल मन का होता है, वही मुझे पाता है मुझे कपट और
छल-छ नह सुहाते यद उसे रावण ने भे लेने को भेजा है, तब भी हे सुीव!
अपने को भी भय या हान नह है3
* जग मँ सखा नसाचर जेते लछमनु हनइ नमष मँ तेते
ज सभीत आवा सरना। रखहउँ ताह ान क ना॥4
भावाथ:-यक हे सखे! जगत म जतने भी रास ह, लमण णभर म उन
सबको मार सकते ह और यद वह भयभीत होकर मेरी शरण आया है तो म तो
उसे ाण क तरह रखूँगा॥4
दोहा :
* उभय भाँत तेह आन हँस कह पानकत।
जय पाल कह कप चले अंगद हनू समेत॥44
भावाथ:-पा धाम ी रामजी ने हँसकर कहा- दोन ही थतय म उसे ले
आओ। तब अंगद और हनुमान् सहत सुीवजीकपालु ी रामजी क जय हो
कहते ए चले4
चौपाई :
* सादर तेह आग कर बानर। चले जहाँ रघुपत कनाकर॥
रह ते खे ौ ाता। नयनानंद दान दाता॥1
भावाथ:-वभीषणजी को आदर सहत आगे करक वानर फर वहाँ चले, जहाँ
कणा क खान ी रघुनाथजी थे ने को आनंद का दान ने वाले (अयंत
सुखद) दोन भाइय को वभीषणजी ने र ही से खा॥1
* बर राम छबधाम बलोक। रहे ठटक एकटक पल रोक॥
भु लंब जान लोचन। यामल गात नत भय मोचन॥2
भावाथ:-फर शोभा धाम ी रामजी को खकर वे पलक (मारना) रोककर
ठठककर (तध होकर) एकटक खते ही रह गए। भगवान् क वशाल भुजाएँ ह
लाल कमल समान ने ह और शरणागत भय का नाश करने वाला साँवला
शरीर है2
* सघ आयत उर सोहा। आनन अमत मदन मन मोहा॥
नयन नीर पुलकत अत गाता। मन धर धीर कही मृ बाता॥3
भावाथ:-स से धे ह, वशाल वःथल (चौड़ी छाती) अयंत शोभा रहा
है असं कामदव मन को मोहत करने वाला मु है भगवान् वप
को खकर वभीषणजी ने म (ेमाु का) जल भर आया और शरीर
अयंत पुलकत हो गया। फर मन म धीरज धरकर उहने कोमल वचन कहे3
* नाथ दसानन कर म ाता। नसचर बंस जनम सुराता॥
सहज पापय तामस हा। जथा उलूकह तम पर नेहा॥4
भावाथ:-हे नाथ! म दशमु रावण का भाई ँ। हे वता रक! मेरा जम
रास म आ है मेरा तामसी शरीर है, वभाव से ही मुझे पाप य ह, जैसे
उलू को अंधकार पर सहज ने होता है4
दोहा :
* वन सुजसु सुन आयउँ भु भंजन भव भीर।
ाह ाह आरत हरन सरन सुखद रघुबीर॥45
भावाथ:-म कान से आपका सुयश सुनकर आया ँ क भु भव (जम-मरण)
भय का नाश करने वाले ह हे खय ःख र करने वाले और शरणागत को
सु ने वाले ी रघुवीर! मेरी रा कजए, रा कजए॥45
चौपाई :
* अस कह करत डवत खा। तुरत उठ भु हरष बसेषा॥
दन बचन सुन भु मन भावा। भु बसाल गह दयँ लगावा॥1
भावाथ:-भु ने उह ऐसा कहकर डवत् करते खा तो वे अयंत हष होकर
तुरंत उठ वभीषणजी दन वचन सुनने पर भु मन को बत ही भाए।
उहने अपनी वशाल भुजा से पकड़कर उनको दय से लगा लया॥1
* अनु सहत मल ढग बैठारी। बोले बचन भगत भय हारी॥
क लंक सहत परवारा। सल ठाहर बास तुहारा॥2
भावाथ:-छोट भाई लमणजी सहत गले मलकर उनको अपने पास बैठाकर ी
रामजी भ भय को हरने वाले वचन बोले- हे लंक! परवार सहत अपनी
शल कहो। तुहारा नवास बुरी जगह पर है2
* खल मंडली बस दनु राती। सखा धरम नबहइ ह भाँती॥
म जानउँ तुहार सब रीती। अत नय नपु भाव अनीती॥3
भावाथ:-दन-रात  क मंडली म बसते हो। (ऐसी दशा म) हे सखे! तुहारा
धम कस कार नभता है? म तुहारी सब रीत (आचार-वहार) जानता ँ। तु
अयंत नीतनपु हो, तुह अनीत नह सुहाती॥3
* ब भल बास नरक कर ताता।  संग जन बधाता॥
अब पद ख सल रघुराया। ज तुह क जान जन दाया॥4
भावाथ:-हे तात! नरक म रहना वरन् अछा है, परंतु वधाता  का संग (कभी)
(वभीषणजी ने कहा-) हे रघुनाथजी! अब आपक चरण का दशन कर
शल से ँ, जो आपने अपना सेवक जानकर मु पर दया क है4
दोहा :
* तब लग सल जीव कँ सपनेँ मन बाम।
जब लग भजत राम कँ सोक धाम तज काम॥46
भावाथ:-तब तक जीव क शल नह और व म भी उसक मन को शांत है,
जब तक वह शोक घर काम (वषय-कामना) को छोड़कर ी रामजी को नह
भजता॥46
चौपाई :
* तब लग दयँ बसत खल नाना। लोभ मोह मछर मद माना॥
जब लग उर बसत रघुनाथा। धर चाप सायक कट भाथा॥1
भावाथ:-लोभ, मोह, मसर (डाह), मद और मान आद अनेक  तभी तक
दय म बसते ह, जब तक क धनु-बाण और कमर म तरकस धारण कए ए
ी रघुनाथजी दय म नह बसते1
* ममता तन तमी अँधआरी। राग उलू सुखकारी॥
तब लग बसत जीव मन माह। जब लग भु ताप रब नाह॥2
भावाथ:-ममता पूण अँधेरी रात है, जो राग- पी उलु को सु ने वाली
है वह (ममता पी रा) तभी तक जीव मन म बसती है, जब तक भु
(आप) का ताप पी सूय उदय नह होता॥2
* अब म सल मट भय भारे ख राम पद कमल तुहारे
तुह पाल जा पर अनुला। ताह याप बध भव सूला॥3
भावाथ:-हे ी रामजी! आपक चरणारव दशन कर अब म शल से ँ, मेरे
भारी भय मट गए। हे पालु! आप जस पर अनु होते ह, उसे तीन कार
भवशू (आयामक, आधदवक और आधभौतक ताप) नह ापते3
* म नसचर अत अधम सुभाऊ। सु आचरनु क नह काऊ॥
जासु प मुन यान आवा। तेह भु हरष दयँ मोह लावा॥4
भावाथ:-म अयंत नीच वभाव का रास ँ। मने कभी शु आचरण नह
कया। जनका प मुनय भी यान म नह आता, उन भु ने वयं हष
होकर मुझे दय से लगा लया॥4
दोहा :
* अहोभाय मम अमत अत राम पा सु पुंज।
खेउँ नयन बरंच सव से जुगल पद ज॥47
भावाथ:-हे पा और सु पुंज ी रामजी! मेरा अयंत असीम सौभाय है, जो
मने ा और शवजी ारा सेवत युगल चरण कमल को अपने ने से
खा॥47
चौपाई :
* सुन सखा नज कहउँ सुभाऊ। जान भुसुंड संभु गरजाऊ॥
ज नर होइ चराचर ोही। आवै सभय सरन तक मोही॥1
भावाथ:-(ी रामजी ने कहा-) हे सखा! सुनो, म तुह अपना वभाव कहता ँ,
जसे काकभुशुड, शवजी और पावतीजी भी जानती ह कोई मनु (संपूण)
जड़-चेतन जगत् का ोही हो, यद वह भी भयभीत होकर मेरी शरण तक कर
जाए,1
* तज मद मोह कपट छल नाना। करउँ स तेह साधु समाना॥
जननी जनक बंधु सु दारा। तनु धनु भवन सुद परवारा॥2
भावाथ:-और मद, मोह तथा नाना कार छल-कपट याग तो म उसे बत
शी साधु समान कर ता ँ। माता, पता, भाई, पु, ी, शरीर, धन, घर, म
और परवार॥2
* सब ममता ताग बटोरी। मम पद मनह बाँध बर डोरी॥
समदरसी इछा कछ नाह। हरष सोक भय नह मन माह॥3
भावाथ:-इन सबक मम पी ताग को बटोरकर और उन सबक एक डोरी
बनाकर उसक ारा जो अपने मन को मेरे चरण म बाँध ता है (सारे सांसारक
संबंध का मुझे बना लेता है), जो समदश है, जसे इछा नह है और
जसक मन म हष, शोक और भय नह है3
* अस सजन मम उर बस स लोभी दयँ बसइ धनु जैस
तुह सारखे संत य मोर धरउँ नह आन नहोर4
भावाथ:-ऐसा सजन मेरे दय म से बसता है, जैसे लोभी दय म धन बसा
करता है तु सरीखे संत ही मुझे य ह म और कसी नहोरे से
(ततावश) धारण नह करता॥4
दोहा :
* सगु उपासक परहत नरत नीत ढ़ नेम।
ते नर ान समान मम ज ज पद ेम॥48
भावाथ:-जो सगु (साकार) भगवान् उपासक ह, सरे हत म लगे रहते ह,
नीत और नयम म ढ़ ह और जह ाण चरण म े है, वे मनुय मेरे
ाण समान ह48
चौपाई :
* सुनु लंक सकल गु तोर तात तुह अतसय य मोर॥।
राम बचन सुन बानर जूथा। सकल कहह जय पा बथा॥1
भावाथ:-हे लंकापत! सुनो, तुहारे अंदर उपयु सब गु ह इससे तु मुझे
अयंत ही य हो। ी रामजी वचन सुनकर सब वानर समू कहने लगे-
पा समू ी रामजी क जय हो॥1
* सुनत बभीषनु भु बानी। नह अघात वनामृ जानी॥
पद अंबु गह बारह बारा। दयँ समात ेमु अपारा॥2
भावाथ:-भु क वाणी सुनते ह और उसे कान लए अमृ जानकर
वभीषणजी अघाते नह ह वे बार-बार ी रामजी चरण कमल को पकड़ते ह
अपार े है, दय म समाता नह है2
* सुन सचराचर वामी। नतपाल उर अंतरजामी॥
उर कछ थम बासना रही। भु पद ीत सरत सो बही॥3
भावाथ:-(वभीषणजी ने कहा-) हे ! हे चराचर जगत् वामी! हे शरणागत
रक! हे सबक दय भीतर क जानने वाले! सुनए, मेरे दय म पहले
वासना थी। वह भु चरण क ीत पी नद म बह गई॥3
* अब पाल नज भगत पावनी। सदा सव मन भावनी॥
एवमतु कह भु रनधीरा। मागा तुरत सधु कर नीरा॥4
भावाथ:-अब तो हे पालु! शवजी मन को सद य लगने वाली अपनी
पव भ मुझे दजए।एवमतु’ (ऐसा ही हो) कहकर रणधीर भु ी रामजी
ने तुरंत ही समु का जल माँगा॥4
* जदप सखा तव इछा नह। मोर दरसु अमोघ जग माह॥
अस कह राम तलक तेह सारा। सुमन बृ नभ भई अपारा॥5
भावाथ:-(और कहा-) हे सखा! यप तुहारी इछा नह है, पर जगत् म मेरा
दशन अमोघ है (वह नफल नह जाता) ऐसा कहकर ी रामजी ने उनको
राजतलक कर दया। आकाश से पुप क अपार वृ ई॥5
दोहा :
* रावन ोध अनल नज वास समीर चंड।
जरत बभीषनु राखे दहे राजु अखंड॥49क॥
भावाथ:-ी रामजी ने रावण क ोध पी अन म, जो अपनी (वभीषण क)
ास (वचन) पी पवन से चंड हो रही थी, जलते ए वभीषण को बचा लया
और उसे अखंड रा दया॥49 ()
* जो संपत सव रावनह द दए दस माथ।
सोइ संपदा बभीषनह सकच द रघुनाथ॥49ख॥
भावाथ:-शवजी ने जो संप रावण को दस सर क बल ने पर द थी, वही
संप ी रघुनाथजी ने वभीषण को बत सकचते ए द॥49 ()
चौपाई :
* अस भु छाड़ भजह जे आना। ते नर पसु बनु पूँछ बषाना॥
नज जन जान ताह अपनावा। भु सुभाव कप मन भावा॥1
भावाथ:-ऐसे परम पालु भु को छोड़कर जो मनु सरे को भजते ह, वे बना
सग-पूँछ पशु ह अपना सेवक जानकर वभीषण को ी रामजी ने अपना
लया। भु का वभाव वानरक मन को (बत) भाया॥1
* पुन सबय सब उर बासी। सबप सब रहत उदासी॥
बोले बचन नीत तपालक। कारन मनु दनु घालक॥2
भावाथ:-फर सब जानने वाले, सबक दय म बसने वाले, सवप (सब
प म कट), सबसे रहत, उदासीन, कारण से (भ पर पा करने लए)
मनु बने ए तथा रास का नाश करने वाले ी रामजी नीत क रा
करने वाले वचन बोले-2
* सुनु कपीस लंकापत बीरा। ह बध तरअ जलध गंभीरा॥
संक मकर उरग झष जाती। अत अगाध तर सब भाँत॥3
भावाथ:-हे वीर वानरराज सुीव और लंकापत वभीषण! सुनो, इस गहरे समु
को कस कार पार कया जाए? अने जात मगर, साँप और मछलय से
भरा आ यह अयंत अथाह समु पार करने म सब कार से कठन है3
* कह लंक सुन रघुनायक। कोट सधु सोषक तव सायक॥
जप तदप नीत अस गाई। बनय करअ सागर सन जाई॥4
भावाथ:-वभीषणजी ने कहा- हे रघुनाथजी! सुनए, यप आपका एक बाण ही
करोड़ समु को सोखने वाला है (सोख सकता है), तथाप नीत ऐसी कही गई है
(उचत यह होगा) क (पहले) जाकर समु से ाथना क जाए॥4
दोहा :
* भु तुहार लगु जलध कहह उपाय बचार॥
बनु यास सागर तरह सकल भालु कप धार॥50
भावाथ:-हे भु! समु आपक म बड़े (पूवज) ह, वे वचारकर उपाय बतला
गे तब रीछ और वानर क सारी सेना बना ही परम समु पार उतर
जाएगी॥50
चौपाई :
* सखा कही तुह नीत उपाई। करअ ज होइ सहाई।
मं यह लछमन मन भावा। राम बचन सुन अत ख पावा॥1
भावाथ:-(ी रामजी ने कहा-) हे सखा! तुमने अछा उपाय बताया। यही कया
जाए, यद सहायक ह। यह सलाह लमणजी मन को अछ नह लगी।
ी रामजी वचन सुनकर तो उहने बत ही ःख पाया॥1
* नाथ कर कवन भरोसा। सोषअ सधु करअ मन रोसा॥
कादर मन कँ एक अधारा। आलसी पुकारा॥2
भावाथ:-(लमणजी ने कहा-) हे नाथ! का कौन भरोसा! मन म ोध कजए
(ले आइए) और समु को सुखा डालए। यह तो कायर मन का एक आधार
(तसली ने का उपाय) है आलसी लोग ही - पुकारा करते ह2
* सुनत बहस बोले रघुबीरा। ऐसेह करब धर मन धीरा॥
अस कह भु अनुजह समुझाई। सधु समीप गए रघुराई॥3
भावाथ:-यह सुनकर ी रघुवीर हँसकर बोले- ऐसे ही करगे, मन म धीरज रखो।
ऐसा कहकर छोट भाई को समझाकर भु ी रघुनाथजी समु समीप गए॥3
* थम नाम क स नाई। बै पुन तट दभ डसाई॥
जबह बभीषन भु पह आए। पाछ रावन त पठाए॥4
भावाथ:-उहने पहले सर नवाकर णाम कया। फर कनारे पर बछाकर
बै गए। इधर य ही वभीषणजी भु पास आए थे, य ही रावण ने उनक
पीछ त भेजे थे51
दोहा :
* सकल चरत त खे धर कपट कप ह।
भु गु दयँ सराहह सरनागत पर नेह॥51
भावाथ:-कपट से वानर का शरीर धारण कर उहने सब लीलाए ख। वे अपने
दय म भु गुण क और शरणागत पर उनक ने क सराहना करने लगे
51
चौपाई :
* गट बखानह राम सुभाऊ। अत से गा बसर राऊ॥
रपु त कप तब जाने सकल बाँध कपीस पह आने1
भावाथ:-फर वे कट प म भी अयंत े साथ ी रामजी वभाव क
बड़ाई करने लगे उह राव (कपट वे) भू गया। सब वानर ने जाना क ये शु
त ह और वे उन सबको बाँधकर सुीव पास ले आए॥1
* कह सुीव सुन सब बानर। अंग भंग कर पठव नसचर॥
सुन सुीव बचन कप धाए। बाँध कटक च पास फराए॥2
भावाथ:-सुीव ने कहा- सब वानर! सुनो, रास अंग-भंग करक भे दो।
सुीव वचन सुनकर वानर दौड़े त को बाँधकर उहने सेना चार ओर
घुमाया॥2
* ब कार मारन कप लागे दन पुकारत तदप यागे
जो हमार हर नासा काना। तेह कोसलाधीस आना॥3
भावाथ:-वानर उह बत तरह से मारने लगे वे दन होकर पुकारते थे, फर भी
वानर ने उह नह छोड़ा। (तब त ने पुकारकर कहा-) जो हमारे नाक-कान
काटगा, उसे कोसलाधीश ी रामजी क सौगंध है 3
* सुन लछमन सब नकट बोलाए। दया लाग हँस तुरत छोड़ाए॥
रावन कर दज यह पाती। लछमन बचन बाचु लघाती॥4
भावाथ:-यह सुनकर लमणजी ने सबको नकट बुलाया। उह बड़ी दया लगी,
इससे हँसकर उहने रास को तुरंत ही ड़ा दया। (और उनसे कहा-) रावण
हाथ म यह च ना (और कहना-) हे लघातक! लमण शद (संदसे) को
बाँचो॥4
दोहा :
* कहे मुखागर मू सन मम संदसु उदार।
सीता मल आवा कालु तुहार॥52
भावाथ:-फर उस मूख से जबानी यह मेरा उदार (पा से भरा आ) संद
कहना क सीताजी को कर उनसे (ी रामजी से) मलो, नह तो तुहारा काल
गया (समझो)52
चौपाई :
* तुरत नाइ लछमन पद माथा। चले त बरनत गु गाथा॥
कहत राम जसु लंकाँ आए। रावन चरन सीस त नाए॥1
भावाथ:-लमणजी चरण म मतक नवाकर, ी रामजी गुण क कथा
वणन करते ए त तुरंत ही चल दए। ी रामजी का यश कहते ए वे लंका म
आए और उहने रावण चरण म सर नवाए॥1
* बहस दसानन पूँछ बाता। कहस सु आपन सलाता॥
पु क खबर बभीषन री। जाह मृयु आई अत नेरी॥2
भावाथ:-दशमु रावण ने हँसकर बात पूछ- अरे शु! अपनी शल य नह
कहता? फर उस वभीषण का समाचार सुना, मृयु जसक अयंत नकट गई
है2
* करत राज लंका सठ यागी। होइह जव कर कट अभागी॥
पुन क भालु कस कटकाई। कठन काल ेरत चल आई॥3
भावाथ:-मूख ने रा करते ए लंका को याग दया। अभागा अब जौ का कड़ा
(घु) बनेगा (जौ साथ जैसे घु भी पस जाता है, वैसे ही नर वानर साथ
वह भी मारा जाएगा), फर भालु और वानर क सेना का हाल कह, जो कठन
काल क ेरणा से यहाँ चली आई है3
* ज जीवन कर रखवारा। भयउ मृल चत सधु बचारा॥
क तपस बात बहोरी। ज दयँ ास अत मोरी॥4
भावाथ:-और जनक जीवन का रक कोमल च वाला बेचारा समु बन गया
है (अथात्) उनक और रास बीच म यद समु होता तो अब तक रास
उह मारकर खा गए होते फर उन तपवय क बात बता, जनक दय म मेरा
बड़ा डर है4
दोहा :
* क भइ भ क फर गए वन सुजसु सुन मोर।
कहस रपु दल ते बल बत चकत चत तोर 53
भावाथ:-उनसे तेरी भ ई या वे कान से मेरा सुयश सुनकर ही लौट गए? शु
सेना का ते और बल बताता य नह? तेरा च बत ही चकत (भचका
सा) हो रहा है53
चौपाई :
* नाथ पा कर पूँछ जैस मान कहा ोध तज तैस
मला जाइ जब अनु तुहारा। जातह राम तलक तेह सारा॥1
भावाथ:-(त ने कहा-) हे नाथ! आपने जैसे पा करक पूछा है, वैसे ही ोध
छोड़कर मेरा कहना मानए (मेरी बात पर वास कजए) जब आपका छोटा
भाई ी रामजी से जाकर मला, तब उसक पँचते ही ी रामजी ने उसको
राजतलक कर दया॥1
दोहा :
* रावन त हमह सुन काना। कप बाँध दह ख नाना॥
वन नासका काट लागे राम सपथ दह हम यागे2
भावाथ:-हम रावण त ह, यह कान से सुनकर वानर ने हम बाँधकर बत
क दए, यहाँ तक क वे हमारे नाक-कान काटने लगे ी रामजी क शपथ
दलाने पर कह उहने हमको छोड़ा॥2
* पूँछ नाथ राम कटकाई। बदन कोट सत बरन जाई॥
नाना बरन भालु कप धारी। बकटानन बसाल भयकारी॥3
भावाथ:-हे नाथ! आपने ी रामजी क सेना पूछ, सो वह तो सौ करोड़ मुख से
भी वणन नह क जा सकती। अनेक रंग भालु और वानर क सेना है, जो
भयंकर मु वाले, वशाल शरीर वाले और भयानक ह3
* जेह पु दहे हते सु तोरा। सकल कप महँ तेह बलु थोरा॥
अमत नाम भट कठन कराला। अमत नाग बल बपु बसाला॥4
भावाथ:-जसने नगर को जलाया और आपक पु अय मार को मारा, उसका
बल तो सब वानर म थोड़ा है असं नाम वाले बड़े ही कठोर और भयंकर
योा ह उनम असं हाथय का बल है और वे बड़े ही वशाल ह4
दोहा :
* बद मयंद नील नल अंगद गद बकटास।
दधमु हर नसठ सठ जामवंत बलरास॥54
भावाथ:-वद, मयंद, नील, नल, अंगद, गद, वकटाय, दधमु, सरी,
नशठ, शठ और जाबवान् ये सभी बल क राश ह54
चौपाई :
* कप सब सुीव समाना। इ सम कोट गनइ को नाना॥
राम पाँ अतुलत बल तहह। तृ समान ैलोकह गनह॥1
भावाथ:-ये सब वानर बल म सुीव समान ह और इनक जैसे (एक-दो नह)
करोड़ ह, उन बत सो को गन ही कौन सकता है ी रामजी क पा से उनम
अतुलनीय बल है वे तीन लोक को तृ समान (तुछ) समझते ह1
* अस म सुना वन दसक धर। पम अठारह जूथप बंदर॥
नाथ कटक महँ सो कप नाह। जो तुहह जीतै रन माह॥2
भावाथ:-हे दशीव! मने कान से ऐसा सुना है क अठारह प तो अकले वानर
सेनापत ह हे नाथ! उस सेना म ऐसा कोई वानर नह है, जो आपको रण म
जीत सक2
* परम ोध मीजह सब हाथा। आयसु पै ह रघुनाथा॥
सोषह सधु सहत झष याला। पूरह भर धर बसाला॥3
भावाथ:-सब सब अयंत ोध से हाथ मीजते ह पर ी रघुनाथजी उह
आा नह ते हम मछलय और साँप सहत समु को सोख लगे नह तो
बड़े-बड़े पवत से उसे भरकर पू (पाट) गे3
* मद गद मलवह दससीसा। ऐसे बचन कहह सब कसा॥
गजह तजह सहज असंका। मानँ सन चहत हह लंका॥4
भावाथ:-और रावण को मसलकर धू म मला गे सब वानर ऐसे ही वचन कह
रहे ह सब सहज ही नडर ह, इस कार गरजते और डपटते ह मानो लंका को
नगल ही जाना चाहते ह4
दोहा :
* सहज सू कप भालु सब पुन सर पर भु राम।
रावन काल कोट कँ जीत सकह संाम॥55
भावाथ:-सब वानर-भालू सहज ही शूरवीर ह फर उनक सर पर भु (सवर)
ी रामजी ह हे रावण! वे संाम म करोड़ काल को जीत सकते ह55
चौपाई :
* राम ते बल बुध बपुलाई। से सहस सत सकह गाई॥
सक सर एक सोष सत सागर। तव ातह पूँछ नय नागर॥1
भावाथ:-ी रामचंजी ते (सामय), बल और बु क अधकता को लाख
शे भी नह गा सकते वे एक ही बाण से सैकड़ समु को सोख सकते ह, परंतु
नीत नपु ी रामजी ने (नीत क रा लए) आपक भाई से उपाय पूछा॥
1
* तासु बचन सुन सागर पाह। मागत पंथ पा मन माह॥
सुनत बचन बहसा दससीसा। ज अस मत सहाय कसा॥2
भावाथ:-उनक (आपक भाई ) वचन सुनकर वे (ी रामजी) समु से राह माँग
रहे ह, उनक मन म पा भी है (इसलए वे उसे सोखते नह) त ये वचन
सुनते ही रावण खू हँसा (और बोला-) जब ऐसी बु है, तभी तो वानर को
सहायक बनाया है!2
* सहज भी कर बचन ढ़ाई। सागर सन ठानी मचलाई॥
मू मृषा का करस बड़ाई। रपु बल बु थाह म पाई॥3
भावाथ:-वाभावक ही डरपोक वभीषण वचन को माण करक उहने
समु से मचलना (बालहठ) ठाना है अरे मूख! झूठ बड़ाई या करता है? बस,
मने शु (राम) बल और बु क थाह पा ली॥3
* सचव सभीत बभीषन जाक बजय बभूत कहाँ जग ताक
सुन खल बचन त रस बाढ़। समय बचार पका काढ़॥4
भावाथ:-सुन खल बचन त रस बाढ़। समय बचार पका काढ़॥4
* रामानु दह यह पाती। नाथ बचाइ जुड़ाव छाती॥
बहस बाम कर लीह रावन। सचव बोल सठ लाग बचावन॥5
भावाथ:-(और कहा-) ी रामजी छोट भाई लमण ने यह पका द है हे
नाथ! इसे बचवाकर छाती डी कजए। रावण ने हँसकर उसे बाएँ हाथ से लया
और मंी को बुलवाकर वह मूख उसे बँचाने लगा॥5
दोहा :
* बात मनह रझाइ सठ जन घालस खीस।
राम बरोध उबरस सरन बनु अज ईस॥56क॥
भावाथ:-(पका म लखा था-) अरे मूख! वल बात से ही मन को रझाकर
अपने को न- कर। ी रामजी से वरोध करक तू वणु, ा और
महे क शरण जाने पर भी नह बचेगा॥56 ()
* क तज मान अनु इव भु पद पंकज भृंग।
होह क राम सरानल खल सहत पतंग॥56ख॥
भावाथ:-या तो अभमान छोड़कर अपने छोट भाई वभीषण क भाँत भु
चरण कमल का मर बन जा। अथवा रे ! ी रामजी बाण पी अन म
परवार सहत पतगा हो जा (दोन म से जो अछा लगे सो कर)56 ()
चौपाई :
* सुनत सभय मन मु मुसुकाई। कहत दसानन सबह सुनाई॥
भूम परा कर गहत अकासा। लघु तापस कर बाग बलासा॥1
भावाथ:-पका सुनते ही रावण मन म भयभीत हो गया, परंतु मु से (ऊपर से)
मुकराता आ वह सबको सुनाकर कहने लगा- जैसे कोई पृवी पर पड़ा आ
हाथ से आकाश को पकड़ने क चेा करता हो, वैसे ही यह छोटा तपवी
(लमण) वावलास करता है (डग हाँकता है)1
* कह सु नाथ स सब बानी। समुझ छाड़ कत अभमानी॥
सुन बचन मम परहर ोधा। नाथ राम सन तज बरोधा॥2
भावाथ:-शु (त) ने कहा- हे नाथ! अभमानी वभाव को छोड़कर (इस प म
लखी) सब बात को स समझए। ोध छोड़कर मेरा वचन सुनए। हे नाथ! ी
रामजी से वै याग दजए॥2
* अत कोमल रघुबीर सुभाऊ। जप अखल लोक कर राऊ॥
मलत पा तुह पर भु करही। उर अपराध एकउ धरही॥3
भावाथ:-यप ी रघुवीर समत लोक वामी ह, पर उनका वभाव अयंत
ही कोमल है मलते ही भु आप पर पा करगे और आपका एक भी अपराध वे
दय म नह रखगे3
* जनकसुता रघुनाथह दजे एतना कहा मोर भु कजे
जब तेह कहा बैही। चरन हार क सठ तेही॥4
भावाथ:-जानकजी ी रघुनाथजी को दजए। हे भु! इतना कहना मेरा
कजए। जब उस (त) ने जानकजी को ने लए कहा, तब  रावण ने
उसको लात मारी॥4
* नाइ चरन स चला सो तहाँ। पासधु रघुनायक जहाँ॥
कर नामु नज कथा सुनाई। राम पाँ आपन गत पाई॥5
भावाथ:-वह भी (वभीषण क भाँत) चरण म सर नवाकर वह चला, जहाँ
पासागर ी रघुनाथजी थे णाम करक उसने अपनी कथा सुनाई और ी
रामजी क पा से अपनी गत (मुन का वप) पाई॥5
* रष अगत क साप भवानी। राछस भयउ रहा मुन यानी॥
बंद राम पद बारह बारा। मुन नज आम कँ पगु धारा॥6
भावाथ:-(शवजी कहते ह-) हे भवानी! वह ानी मुन था, अग ऋष शाप
से रास हो गया था। बार-बार ी रामजी चरण क वंदना करक वह मुन
अपने आम को चला गया॥6
दोहा :
* बनय मानत जलध जड़ गए तीन दन बीत।
बोले राम सकोप तब भय बनु होइ ीत॥57
भावाथ:-इधर तीन दन बीत गए, कतु जड़ समु वनय नह मानता। तब ी
रामजी ोध सहत बोले- बना भय ीत नह होती!57
चौपाई :
* लछमन बान सरासन आनू सोष बारध बसख सानु
सठ सन बनय टल सन ीत। सहज पन सन सुंदर नीत॥1
भावाथ:-हे लमण! धनु-बाण लाओ, म अनबाण से समु को सोख डालूँ।
मूख से वनय, टल साथ ीत, वाभावक ही जू से सुंदर नीत (उदारता
का उपद),1
* ममता रत सन यान कहानी। अत लोभी सन बरत बखानी॥
ोधह सम कामह हरकथा। ऊसर बीज बएँ फल जथा॥2
भावाथ:-ममता म से ए मनु से ान क कथा, अयंत लोभी से वैराय का
वणन, ोधी से शम (शांत) क बात और कामी से भगवान् क कथा, इनका वैसा
ही फल होता है जैसा ऊसर म बीज बोने से होता है (अथात् ऊसर म बीज बोने
क भाँत यह सब थ जाता है)2
* अस कह रघुपत चाप चढ़ावा। यह मत लछमन मन भावा॥
संधाने भु बसख कराला। उठ उदध उर अंतर वाला॥3
भावाथ:-ऐसा कहकर ी रघुनाथजी ने धनु चढ़ाया। यह मत लमणजी मन
को बत अछा लगा। भु ने भयानक (अन) बाण संधान कया, जससे समु
दय अंदर अन क वाला उठ॥3
* मकर उरग झष गन अकलाने जरत जंतु जलनध जब जाने
कनक थार भर मन गन नाना। ब प आयउ तज माना॥4
भावाथ:-मगर, साँप तथा मछलय समू ाक हो गए। जब समु ने जीव
को जलते जाना, तब सोने थाल म अने मणय (रन) को भरकर अभमान
छोड़कर वह ाण प म आया॥4
दोहा :
* काटह पइ कदरी फरइ कोट जतन कोउ सच।
बनय मान खगे सुनु डाटह पइ नव नीच॥58
भावाथ:-(काकभुशुडजी कहते ह-) हे गड़जी! सुनए, चाहे कोई करोड़ उपाय
करक सचे, पर ला तो काटने पर ही फलता है नीच वनय से नह मानता, वह
डाँटने पर ही झुकता है (राते पर आता है)58
* सभय सधु गह पद भु रे छम नाथ सब अवगु मेरे॥।
गगन समीर अनल जल धरनी। इ कइ नाथ सहज जड़ करनी॥1
भावाथ:-समु ने भयभीत होकर भु चरण पकड़कर कहा- हे नाथ! मेरे सब
अवगु (दोष) मा कजए। हे नाथ! आकाश, वायु, अन, जल और पृवी- इन
सबक करनी वभाव से ही जड़ है1
* तव ेरत मायाँ उपजाए। सृ हेतु सब ंथन गाए॥
भु आयसु जेह कहँ जस अहई। सो तेह भाँत रह सु लहई॥2
भावाथ:-आपक ेरणा से माया ने इह सृ लए उप कया है, सब ंथ ने
यही गाया है जसक लए वामी क जैसी आा है, वह उसी कार से रहने म
सु पाता है2
* भु भल क मोह सख दह। मरजादा पुन तुहरी कह॥
ढोल गवाँर सू पसु नारी। सकल ताड़ना अधकारी॥3
भावाथ:-भु ने अछा कया जो मुझे शा () द, कतु मयादा (जीव का
वभाव) भी आपक ही बनाई ई है ढोल, गँवार, शू, पशु और ी- ये सब
शा अधकारी ह3
* भु ताप म जाब सुखाई। उतरह कटक मोर बड़ाई॥
भु अया अपे ुत गाई। कर सो बेग जो तुहह सोहाई॥4
भावाथ:-भु ताप से म सू जाऊ गा और सेना पार उतर जाएगी, इसम मेरी
बड़ाई नह है (मेरी मयादा नह रहेगी) तथाप भु क आा अपे है (अथात्
आपक आा का उलंघन नह हो सकता) ऐसा वे गाते ह अब आपको जो
अछा लगे, म तुरंत वही क 4
दोहा :
*सुनत बनीत बचन अत कह पाल मुसुकाइ।
जेह बध उतरै कप कटक तात सो कह उपाइ॥59
भावाथ:-समु अयंत वनीत वचन सुनकर पालु ी रामजी ने मुकराकर
कहा- हे तात! जस कार वानर क सेना पार उतर जाए, वह उपाय बताओ॥
59
चौपाई :
* नाथ नील नल कप ौ भाई। लरका रष आसष पाई॥
त परस कए गर भारे तरहह जलध ताप तुहारे1
भावाथ:-(समु ने कहा)) हे नाथ! नील और नल दो वानर भाई ह उहने
लड़कपन म ऋष से आशीवाद पाया था। उनक पश कर लेने से ही भारी-भारी
पहाड़ भी आपक ताप से समु पर तै जाएँगे1
* म पुन उर धर भु भुताई। करहउँ बल अनुमान सहाई॥
एह बध नाथ पयोध बँधाइअ। जेह यह सुजसु लोक तँ गाइअ॥2
भावाथ:-म भी भु क भुता को दय म धारण कर अपने बल अनुसार
(जहाँ तक मुझसे बन पड़ेगा) सहायता क गा। हे नाथ! इस कार समु को
बँधाइए, जससे तीन लोक म आपका सुंदर यश गाया जाए॥2
* एह सर मम उर तट बासी। हत नाथ खल नर अघ रासी॥
सुन पाल सागर मन पीरा। तुरतह हरी राम रनधीरा॥3
भावाथ:-इस बाण से मेरे उर तट पर रहने वाले पाप राश  मनुय का वध
कजए। पालु और रणधीर ी रामजी ने समु मन क पीड़ा सुनकर उसे
तुरंत ही हर लया (अथात् बाण से उन  का वध कर दया)3
* ख राम बल पौष भारी। हरष पयोनध भयउ सुखारी॥
सकल चरत कह भुह सुनावा। चरन बंद पाथोध सधावा॥4
भावाथ:-ी रामजी का भारी बल और पौष खकर समु हष होकर सुखी
हो गया। उसने उन  का सारा चर भु को कह सुनाया। फर चरण क
वंदना करक समु चला गया॥4
:
* नज भवन गवने सधु ीरघुपतह यह मत भायऊ।
यह चरत कल मल हर जथामत दास तुलसी गायऊ॥
सु भवन संसय समन दवन बषाद रघुपत गु गना।
तज सकल आस भरोस गावह सुनह संतत सठ मना॥
भावाथ:-समु अपने घर चला गया, ी रघुनाथजी को यह मत (उसक सलाह)
अछा लगा। यह चर कलयु पाप को हरने वाला है, इसे तुलसीदास ने
अपनी बु अनुसार गाया है ी रघुनाथजी गु समू सु धाम, संद
का नाश करने वाले और वषाद का दमन करने वाले ह अरे मूख मन! तू संसार
का सब आशा-भरोसा यागकर नरंतर इह गा और सुन।
दोहा :
* सकल सुमंगल दायक रघुनायक गु गान।
सादर सुनह ते तरह भव सधु बना जलजान॥60
भावाथ:-ी रघुनाथजी का गुणगान संपूण सुंदर मंगल का ने वाला है जो इसे
आदर सहत सुनगे, वे बना कसी जहाज (अ साधन) ही भवसागर को तर
जाएँगे60
मासपारायण, चौबीसवाँ वाम
इत ीमामचरतमानसे सकलकलकलुषववंसने पंचमः सोपानः
समातः।कलयु समत पाप का नाश करने वाले ी रामचरत मानस का
यह पाँचवाँ सोपान समात आ।
(सुदरकाड समात)